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________________ प्रवचन-३ . . गई थी। अब क्षत्रिय की धारा है। इसलिए जो संघर्ष या उस दिन वह बहुत गहरे में ब्राह्मण और तत्रिय के मार्ग का संघर्ष था। और यह थोड़ी सोचने की बात है कि जैनों के चौबीसों तीर्थकर हो क्षत्रिय हैं । असल में वह मार्ग हो क्षत्रिय का है । कोई पूछता है कभी कि क्या क्षत्रिय के अलावा और कोई तीर्थकर नहीं हो सकता ? नहीं हो सकता। चाहे वह बेटा ब्राह्मणी के ही गर्भ से क्यों न . पैदा हो वह होगा क्षत्रिय ही, तो ही उस मार्ग पर जा सकता है। वह मार्ग आक्रमण का है,वह मार्ग विजय का है। वहाँ भाषा विजय को और जीत की है। ___ दूसरी बात लोग निरन्तर पूछते हैं कि क्या गरीब का बेटा तीर्थकर नहीं हो सकता? वह सब राजपुत्र थे-क्षत्रिय और राजकुल के। यह भी बहुत अर्थपूर्ण है कि जो अभी इस संसार को ही नहीं जीत पाया है, वह उस संसार को कैसे जीतेगा ? आक्रमण का मार्ग है न ? तो अभी जब इस संसार में ही नहीं जीत पाए तो वहाँ कैसे जीत लोगे? यह इतनी छोटी सी जीत नहीं तय कर पाए तो उस बड़ी जीत पर कैसे जाओगे? इसलिए चौबीसों बेटे राजपुत्र हुए हैं। राजपुत्र इस अर्थ के सूचक हैं कि जीतने वाला जो है वह कुछ भी जीतेगा। और जब वह इसको जीत लेगा तब उसकी तरफ उसकी नजर उठेगी । जब वह इस लोक को जीत लेगा तब उस लोक को जीतेगा। जीत के मार्ग पर पहले यही लोक पड़ने वाला है। ब्राह्मण इस लोक में भी भिक्षा मांगेगा, उस लोक में भी। वह मानता ही यह है कि प्रसाद से ही मिलेगा जो मिलना है । आक्रमण की बात ही नहीं है कोई। ग्रेस से, प्रभु की कृपा से मिलेगा। जो इतिहास के क्षेत्र में शोध करने वालों ने ब्राह्मणजाति के विरुद्ध क्षत्रिय जाति के संघर्ष की चर्चा की है वह निराधार है। ब्राह्मण और क्षत्रिय ऐसी दो जातियों का कोई संघर्ष नहीं, संघर्ष है ऐसी दो परम्पराओं का, ऐसे दो मार्गों का जो सत्य की खोज में निकले हों। और तब एक मार्ग कुन्ठित हो जाता है, और सब मार्ग कुन्ठित हो जाते हैं सोमा पर जाकर क्योंकि सब मार्ग अहंमन्य हो जाते हैं । ब्राह्मण का मार्ग प्राचीनतम मार्ग है। वह कुन्ठित हो गया है। उसके विरोध में बगावत जरूरी बी। वह बगावत क्षत्रिय से आनी स्वाभाविक थी क्योंकि हमेशा बगावत ठीक विपरीत से बाती है, विद्रोह जो है ठीक विपरीत से आता है। ब्राह्मण है मांगने वाला; मात्रिय है जीतने वाला। एक दान और दयों में लेगा) दुसरा दुरमन को समाप्त करके लेगा। ठीक बगावत विपरीत वर्ग से आने वाली थी, इसलिए वह पत्रिय ये। इसलिए वह जन्म की कथा बड़ी मोठी है। यानी वह यह बताती है कि
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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