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________________ F. महावीर : मेरी दृष्टि में अब ब्राह्मण भी समझने जैसी बात है। ब्राह्मण का अपना मार्ग है । जैसे मैंने कहा पुरुष का एक मार्ग है बाक्रमण का, स्त्री का एक मार्ग है समर्पण का। ब्राह्मण का एक मार्ग है भिक्षा मांग लेने का। यानी ब्राह्मण यह कह रहा है कि परमात्मा से लड़ोगे ? अशोभन है। समर्पण करोगे किसके प्रति ? उसका अभी कोई पता नहीं है। लेकिन अज्ञात घेरे हुए है चारों तरफ और हम अत्यन्त क्षुद्र और दीन-हीन है। हम जीत नहीं सकते और हम समर्पण भी क्या करेंगे? हमारे पास समर्पण को भी क्या है ? दीनता, हीनता इतनी है, असहाय हम इतने हैं तो देंगे क्या हम ? देने को क्या है ? और छीनेंगे कैसे ? एक ही मार्ग है कि हाथ फैला दें विनम्रता से । और भिक्षा में हम ले लें। तो ब्राह्मण का जो मार्ग है, ब्राह्मण की जो वृत्ति है वह भिक्षुक की है। . कहानी कहती है कि महावीर जैसा व्यक्ति अगर ब्राह्मण के गर्भ में आ जाएगा तो देवताओं को उसे हटा कर क्षत्रिया के गर्भ में रख देना पड़ेगा। वह व्यक्तित्व ब्राह्मणी का नहीं है । और व्यक्तित्व गर्भ से आते हैं। वह व्यक्तित्व हो जन्मना क्षत्रिय का है। जो जीतेगा, मांग नहीं सकता है। महावीर ऐसे हाथ नहीं फैला सकते, परमात्मा के सामने भी नहीं, किसी के भी सामने नहीं; वह जीतेंगे। जीत कर ही अर्थ है उनकी जिन्दगी का। और इस देश में जो परम्परा थी, उन क्षणों में जो परम्परा थी, सर्वाधिक प्रभावी, वह ब्राह्मणों की थी । वह असहाय, मांगने वाले को थी। अद्भुत है यह बात । इतनी आसान नहीं जितना कोई सोचता हो। क्योंकि असहाय होना बड़ी अद्भुत कान्ति है, बिल्कुल असहाय हो जाना। वह भी एक मार्ग है। लेकिन वह मार्ग बुरी तरह पिट गया था, असहाय ब्राह्मण मरा दम ही हो गया था। जो अद्भुत घटना घट गई थी वह यह थी। क्योंकि मार्ग तो था असहाय होने का लेकिन परम्परा इतनी गाढ़ी हो गई थी, इतनी मजबूत हो गई थी कि असहाय ब्राह्मण सबसे ज्यादा अकड़ कर सड़क पर खड़ा था। ब्राह्मण की जो मौलिक धारणा थी वह खंडित हो चुकी थी। ब्राह्मण गुरु हो गया था, ब्राह्मण ज्ञानी हो गया था, ब्राह्मण सबसे उ.पर बैठ गया था। वह जो असहाय होने को धारणा थी वह खो गई थी। उस बात को तोड़ देना जरूरी था। इसको बड़े प्रतीक रूप में कथा कहती है कि ब्राह्मणी के गर्भ में भी आकर देवताओं को हटा देना पड़ा। यानी ब्राह्मणी का गर्भ अब महावीर जैसे व्यक्ति को पैदा करने में असमर्थ हो गया था। उसका यह मतलब है कि ब्राह्मण की दिशा से महावीर जैसे व्यक्ति के होने की सम्भावना न थी। सूख गई थी धारा, अकड़ गई थी, ऐंठ गई थो, गलत हो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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