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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२ मनुष्यजाति की समृद्धि में महावीर मागे भी सार्थक रहें, यह मेरा चाहना है। उस पर जैसे हम उनकी साधना प्रकृति को पूरा समझेंगे तो ख्याल में आ जाएगा लेकिन उसमें क्या है ? जैसे मैं यह कह रहा हूँ उदाहरण के लिए,महावीर को साधना पूर्ण संकल्प की साधना है। और जैन परम्परा कहती है दमन की साधना । दमन शब्द सार्थक नहीं, खतरनाक है। फ्रायड के बाद दमन की जो भी साधना बात करेगी उसके लिए जगत् में कोई स्थान नहीं, हो ही नहीं सकता। अब फायड के बाद दमन का जिस साधना पद्धति में प्रयोग किया, वह पद्धति उस शब्द के साथ ही दफना दी जाएगी। वह नहीं रह सकती है अब। और ऐसा नहीं है कि महावीर की साधना दमन की साधना है। असल में दमन का अर्थ ही और था तब । फायड ने पहली बार दमन को नया अर्थ दिया है जो कभी था ही नहीं। ___ तब कायाक्लेश शब्द का हम उपयोग करते थे। अब नहीं करते हैं। अब किसी ने कहा 'कायाक्लेश' वह गया। उसी शब्द के साथ डूब जाएगा पूरा का पूरा उसका विचार । क्योंकि काया-क्लेश आने वाले भविष्य के लिए सार्थक नहीं, निरर्थक है। और काया-क्लेश का जो मतलब है वह अब भी सार्थक है। महावीर की पद्धति में जिसको काया-दमन कहा है, वह अब भी सार्थक है। लेकिन यह शब्द बाधा पड़ गया है, एकदम खतरनाक हो गया है। फ्रायड के बाद जो काया-क्लेश दे रहा है वह आदमो खुद को सताने में मजा ले रहा है। वह आदमी रुग्ण है, मानसिक बीमार है जो अपने को सताने में मजा ले रहा है। दो तरह के लोग हैं : जो दूसरों को सतान में मजा लेते हैं सैडिस्ट और जो अपने को सताने में मजा लेते हैं वे हैं मैसोचिस्ट । इसलिए जैनियों की नासमझी में वह महावीर फंस जाने वाले हैं और उनके बचाव का कोई उपाय नहीं है। और अगर महावीर के शरीर को देखो तो तुम्हें पता चल जाएगा कि तुम्हारी काया-क्लेश की वात नितान्त नासमझी की है। हां, तुम्हारे मुनि को देखो तो पता चलता है कि काया-क्लेश सच है। महावीर की काया को देखकर लगता है कि ऐसी काया को संवारने वाला आदमी ही नहीं हुआ। महावीर को देखकर तो ऐसा ही लगता है। ऐसी सुन्दर काया न.बुद्ध के पास थी, न क्राइस्ट के पास थी जैसी महावीर के पास । जितना सुन्दर शरीर महावीर के पास था ऐसा किसी के पास नहीं था। और मेरा अपना मन मानता है कि इतना सुन्दर होने की वजह से वह नग्न खड़े हो सके। असल में नग्नता को छिपाना कुरूपता
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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