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महावीर : मेरी दृष्टि में
जितना बुद्ध ने इतने बड़े व्यापक वर्ग को प्रभावित किया। उसका कारण है कि महावीर के पास जो प्रतीक थे, वे अतीत के थे और बुद्ध के पास जो प्रतीकः थे वे भविष्य के थे । महावीर के पास जो प्रतीक थे उनके पीछे तेईस तीर्थंकरों की धारा थी । प्रतीक पिट चुके थे, प्रतीक प्रचलित हो चुके थे, प्रतीक परिचित हो गए थे । इसीलिए महावीर का बहुत क्रान्तिकारी व्यक्तित्व भी क्रान्तिकारी नहीं मालूम पड़ता था क्योंकि प्रतीक, जो उन्होंने प्रयोग किए, पीछे से आये थे । ओर बुद्ध का उतना क्रान्तिकारी व्यक्तित्व नहीं था जितना महावीर का । किन्तु वह ज्यादा क्रान्तिकारी मालूम हो सका ।
बुद्ध के प्रतीक भविष्य के हैं। यानी बहुत फर्क पड़ता है । भाषा जो बुद्ध ने चुनी वह भविष्य की थी । सच तो यह है कि अभी बुद्ध का प्रभाव और बढ़ेगा । आने वाले सौ वर्षों में बुद्ध के प्रभाव के निरन्तर बढ़ जाने की भविष्यवाणी की जा सकता है क्योंकि बुद्ध ने जो प्रतीक चुने वे आने वाले सौ वर्षों में मनुष्य के और निकट आ जाने वाले हैं, एक दम निकट आ जाने वाले हैं। यानी मनुष्य अभी भी इन प्रतीकों से पूरी तरह चुक नहीं गये हैं, बल्कि करीब आ रहे हैं । इसलिए, पश्चिम में इस समय बुद्ध का प्रभाव एकदम बढ़ता जा रहा है । बुद्ध ने सारे प्रतीक नए चुने हैं, सारी भाषा नई चुनी है । जैसे कि महावीर ने आत्मा की बात की है; बुद्ध ने आत्मा को इन्कार कर दिया है । बुद्ध ने कहा कि आत्मा वगैरह कोई भी नहीं है । महावोर ने इन्कार किया परमात्मा को, परमात्मा नहीं है, मैं ही हूँ । बुद्ध ने परमात्मा की बात ही करने योग्य भी नहीं माना। बात ही फिजूल है, चर्चा के 'मैं हूँ' इसको भी इन्कार कर दिया और कहा कि जो अपने 'मैं' के पूर्ण इन्कार को उपलब्ध हो जाता है, उसका निर्माण हो जाता है ।
नहीं की, इन्कार
योग्य नहीं । और
यह जो आने वाली सदी है, धीरे-धीरे उस जगह पहुँच रही है जहाँ व्यक्ति अनुभव कर रहा है कि व्यक्ति होना भी एक बोझ है । इसको भी इसलिए बिदा हो जाना चाहिए, इसकी भी कोई आवश्यकता नहीं । अहंकार 'इगो' भी एक बोझ है इसे भी विदा हो जाना चाहिए । फिर भी महावीर ने जो व्यवस्था की उसमें मोक्ष पाने का ख्याल है, मोक्ष मिल जाए। उसमें एक उद्देश्य, एक लक्ष्य है, ऐसा मालूम पड़ता है । जो प्रतीक उन्होंने चुने हैं उनकी वजह से ऐसा मालूम पड़ता है कि मोक्ष एक लक्ष्य है। उसके लिए साधन करो, तपस्या करो तो मोक्ष मिलेगा । बुद्ध ने कहा कि कोई लक्ष्य नहीं क्योंकि जब तक लक्ष्य की भाषा है तब तक इच्छा है, वासना है, तृष्णा है । लक्ष्य की बातें