SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २ आक्रामक ( एग्रेसिव ) मन है । इसलिए स्त्री अगर किसी को प्रेम भी करे तो आक्रमण नहीं करेगी । प्रेम भी करे, उसका मन किसी के पास जाने को हो, तब भी बैठकर उसकी प्रतीक्षा करेगी कि वह आए । यानी वह किसी को प्रेम भी करती है तो जा नहीं सकती उठकर उसके पास । वह प्रतीक्षा करेगी कि वह आए । उसका पूरा का पूरा मन निष्क्रिय ( पैसिव ) है । आप आएँगे तो खुश होगी, आप नहीं आएँगे तो दुखी होगी । लेकिन इनेशियेटिव नहीं ले सकती, पहल नहीं कर सकती कि वह खुद आप पर जाएँ। अगर एक स्त्री किसी को प्रेम करती है तो वह कभी प्रस्ताव नहीं करेगी कि मुझसे विवाह करना है । वह प्रतीक्षा करेगी कि कब तुम प्रस्ताव करो । किसी स्त्रो ने कभी प्रस्ताव नहीं किया। विवाह का । हीं वह प्रस्ताव के लिए सारी योजना करेगी । प्रस्ताव लेकिन तुम्हीं करो । प्रस्ताव कभी वह नहीं करने वाली । और प्रस्ताव किए जाने पर भी कभी कोई स्त्री सीधा 'हाँ' नहीं भर सकती क्योंकि 'हाँ' आज्ञाक है । और एकदम से 'हाँ' भरने से पता चलता है कि उसकी तैयारी थी । तो कभी एकदम 'हाँ' नहीं करेगी। वह 'ना' करेगी । 'ना' को धीरे-धीरे धीमा करेगी । 'ना' को धीरे-धीरे 'हाँ' के करीब ला पाएगी । ' निगेटिव' है उसका माइन्ड | शारीरिक रचना भी उसकी निगेटिव है, पाजेटिव नहीं । इसलिए स्त्री कभी किसी पुरुष पर बलात्कार नहीं कर सकतो क्योंकि पुरुष यदि राजी नहीं है तो स्त्री किसी तरह का काम सम्बन्ध उससे स्थापित नहीं कर सकती । लेकिन स्त्री अगर राजी भी नहीं होती तो भी पुरुष उसके साथ सम्भोग कर सकता है, व्यभिचार कर सकता है । क्योंकि वह है निगेटिव; पुरुष है पाजिटिव । ५७ · महावीर की जो जीवन चिन्तना है वह पुरुष की जीवन चिन्तना है । इसलिए महावीर के मार्ग में स्त्री को मोक्ष पाने का उपाय भी नहीं है । अकारण नहीं है वह बात | इसका मतलब यह नहीं कि स्त्री को मोक्ष नहीं हो सकता । इसका मतलब केबल इतना है कि महावीर के मार्ग से नहीं हो सकता । महावीर के मार्ग में स्वी को एक बार और पुरुष योनि लेनी पड़े तब वह मोक्ष की तरफ जा सकती है । क्योंकि महावीर की जो व्यवस्था है, वह संकल्प की है; इच्छा की, आक्रमण की, बहुत गहरे आक्रमण की व्यवस्था है । उस व्यवस्था में कहीं हारना, टूटना, पराजित होना उसका उपाय नहीं । महावीर कहते हैं कि जीतना है तो जीतो, समग्र शक्ति लगाकर जीतो । एक इंच शक्ति पीछे न रह जाए । और लाओत्से कहता है अपने एक शिष्य को जो उससे पूछता है कि आप कभी हारे । लाओत्से कहता है 'मैं कभी नहीं हारा' । शिष्य कहता है 'कभी तो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy