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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में . . . खण्डन नहीं किया। लेकिन बुद्ध ने. बहुत बार महावीर का खण्डन किया और बहुत कठोर शब्द कहे। इसलिए मैं कहता हूँ कि महावीर वृद्ध थे, बुद्ध जवान थे महावीर विदा हो रहे थे और बुद्ध आ रहे थे। बुद्ध को एकदम जरूरी था यह डिस्टिक्शन बनाना, यह भेद बनाना, बिल्कुल साफ । उस व्यवस्था से हमें कुछ लेना देना नहीं। वह बिल्कुल गलत है, क्योंकि लोक मानस में वह विदा होती हुई व्यवस्था हुई जा रही है और अगर उससे कोई भी सम्बन्ध जोड़ा तो नई व्यवस्था के जन्मने में बाधा बनने वाली है, और कुछ नहीं होने वाला है। फिर बोर भी बात है। चाहे कोई व्यवस्था विचार की, चिन्तन की, दर्शन की कितनी ही गहरी क्यों न हो वह केवल एक विशेष तरह के व्यक्तियों को ही प्रभावित करती है। कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है जो सब तरह के व्यक्तियों के काम आ सके। अब तक नहीं है और न हो सकती है। अब तो यह पक्का माना जा सकता है कि वह नहीं हो सकती। महावीर के व्यक्तित्व को जो प्रभावित करती है बात, वह पारस वाली, नेमि वाली, आदिनाथ वाली बात उन्हें प्रभावित करती है । वह उस टाइप के व्यक्ति है, और इस टाइप के बनने में भी अनन्त जन्म लगते हैं। एक खास टाइप के बनने में उनको वह खास तरह की धारा ही प्रभावित कर सकती है। बुद्ध बिल्कुल भिन्न तरह के व्यक्ति हैं । उनके व्यक्तित्व को अपनी यात्रा है। उन्हें उसमें कुछ रस नहीं मालूम होता। लेकिन मैं मानता हूँ कि बुद्ध की चिंतना ने बहुत से लोगों को, जो महावीर से कभी कोई लाभ नहीं ले सकते थे, लाभ दिया । और वे बुद्ध से लाभ ले सके। लेकिन बुद्ध और महावीर की एक धारा है, मीरा की अपनी चिन्तना, अपनी धारा है। महावोर और मीरा का व्यक्तित्व बिल्कुल उल्टा है। अगर महावीर की अकेली चिन्तना दुनिया में हो तो बहुत थोड़े से लोग ही सत्य के अन्तिम मार्ग तक पहुँच पायेंगे क्योंकि मीरा के टाइप के लोग वंचित रह जायेंगे, उनसे उसका मेल ही नहीं हो पाता। अनन्त धाराएं चलती हैं इसलिए कि अनन्त प्रकार के व्यक्ति हैं और चेष्टा यही है कि ऐसा एक व्यक्ति भी न रह जाए जिसके योग्य और जिसके अनुकूल पड़ने वाली धारा न मिल सके । इसलिए अनन्त धाराएं हैं बोर रहेंगी। दुनिया जितनी विकसित होती जाएगी उतनी बाराएं ज्यादा होती जाएंगी । धाराएं ज्यादा होनी चाहिए । . महावीर की जो जीवनधारा है वह एकदम पुरुष की है, उसमें स्त्री का उपाय ही नहीं है । पुरुष और स्त्री के मानस में बुनियादी भेद है। जैसे स्त्री के पास जो मन है. वह निष्क्रिय (पैसिव ) मन है। पुरुष के पास जो मन है वह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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