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________________ अश्मोत्तर-प्रवचन- २ ५५ 1 1 हुआ है, और यह ढंग कोई तीर्थंकर निर्मित नहीं करता उनके होने से निर्मित होता है । उनकी मौजूदगी से निर्मित होता है । जैसे सूरज निकला है। सूरज अब कोई आपकी बगिया का फूल निर्मित नहीं करता !! लेकिन सूरज की मौजूदगी से फूल खिलते हैं, फूल' निर्मित होते हैं। सूरज न निकले तो आपकी बगिया में फूल नहीं खिलेंगे । फिर भी सूरज सीधा जिम्मेदार नहीं है आपकी बगिया के फूल खिलाने को । फिर आपने अपनी बगिया में एक तरह के फूल लगा रखे हैं ओर मैंने अपनी बगिया में दूसरी तरह के । मेरी बगिया में दूसरी तरह के फूल खिलते हैं और आपकी बगिया में दूसरी तरह के । दोनों सूरज से खिलते हैं । फिर भी, दोनों में भेद होगा और आपने अपनी बगिया में इस तरह के फूल लगा रखे हैं तो उनमें भी भेद होगा । प्रत्येक धारा जैसे कि चौबीस तीर्थंकरों की एक धारा है, एक प्रतीक व्यवस्था में खड़ी हुई है। उसका अपना प्रतीक है, अपने शब्द हैं, अपनी 'कोड' लैंग्वेज है । और वह उसके अपास जो वर्तुल खड़ा हो गया है उन शब्दों, उन प्रतीकों के आस-पास, वह न दूसरे प्रतीक समझ सकता है, न पहचान सकता है । बुद्ध की एक बिल्कुल नई परम्परा शुरू हो रही है जिससे सब प्रतीक नए हैं और मैं मानता हूँ कि उसका भी एक कारण है । असल में पुराने प्रतीक एक सीमा पर जाकर जड़ हो जाते हैं और हमेशा नए प्रतीकों की जरूरत पड़ती है । अगर बुद्ध यह कह दें वही महावीर कहते हैं तो जो फायदा बुद्ध पहुँचा सकते हैं, सकेंगे । महावीर पर एक धारा खत्म हो रही है । महावीर अन्तिम है एक भाषा के और वह भाषा जड़ हो उखड़ गई होगी और अब उसकी गति चली गई होगी, गई होगी । ( कि जो मैं कह रहा हूँ वह कभी नहीं पहुँचा रही है और जड़प्राय होकर नष्ट हो टूटने के बुद्ध एक बिल्कुल नई धारा के सिर्फ प्रारम्भ हैं। चेष्टा करनी पड़ेगी कि वह कहे कि यह महावीस्वाली मजा तो यह है कि यह पूरी तरह जानते हुए कि जो बुद्ध को पूरे समय जोर देना पड़ेगा, और ज्यादा जोर देना चूक से भी वह उस धारा से न जुड़ जाएँ क्योंकि वह जो गई है, जिसका वक्त पूरा हो गया है विद्वा हो रही है, गई तो यह जन्म ही नहीं ले पाएगी। आप मतलब मतलब यह है कि बुद्ध को बहुत सचेत होना पड़ेगा । आ जाए कि महावीर ने बुद्ध के खिलाफ एक शब्द भी गई होगी, करीब हो इसे नई धारा को पूरी धारा तो है ही नहीं । महावीर हैं वही बुद्ध हैं, पड़ेगा कि कहीं भूलमरती हुए धारा हो अगर उससे यह भी जुड़ समझ रहे हैं न ? मेरा इसलिए स्याल में आपको नहीं कहा, बुद्ध का कोई
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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