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प्रश्नोतलप्रवचन-१४
अब एक भावमी ने निर्णय किया है कि मैं धूप में पैठूमा। तो धूप का जो भी फल होने वाला है, वह उसे मिलने वाला है। इसमें धूप जिम्मेदार नहीं है। इसमें कोई जिम्मेदार नहीं है । धूप का काम धूप है। आपका काम है कि बापने निर्णय किया धूप में बाहर बैठने का। आपका चेहरा काला हो जाएगा। वह जिम्मेदारी आपकी है। वह बापका प्रारब्ध हो जाएगा। लेकिन बाज मगर चेहरा काला हो गया तो उसको ठीक करने में इस दिन लग पाएंगे। तो दस दिन तक प्रारम्प पीछा करेगा क्योंकि वह जो हो गया उसका क्रम होगा। तो हम जिसको प्रारब्ध कहते हैं वह हमारे अतीत में किए गए निर्णयों का इकट्ठा सारांश है । वह निर्णय हमने किए थे, उनकी व्यवस्था हो गई है। ये हमें करने पड़ रहे हैं।
प्रश्न : और अभी पुरुषार्थ करेंगे, सोचेंगे ?
उत्तर : बिल्कुल नहीं, वह तो सवाल ही नहीं, पुरुषार्थ और प्रारब्ध का। तुम स्वतन्त्र हो आज भी। और आज तुम जो करोगे वह फिर निर्णय बनेगा और फिर एक तरह का प्रारब्ध निर्मित होगा उससे । बहुत गौर से देखें तो मोच भी एक प्रारम्ष है। जो आदमी स्वतन्त्र होने का निर्णय करता है अन्त में मुक्त हो जाता है। संसार भी एक प्रारम्य है। प्रारष का मतलब ही इतना होता है कि तुमने कुछ निर्णय किया फिर उस निर्णय का फल भोगो।
प्रश्न : शास्त्रों में पुरुषार्थ मानी हई भवितव्यता बताई है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर : शास्त्रों से मुझे कुछ मतलब ही नहीं। शास्त्रों से क्या लेना-देना है । शास्त्र लिखने वाले की मौज थी। तुम्हारी मौज है पढ़ो या न पढ़ो। वह कहीं बांधता नहीं। उससे क्या लेना-देना ? उससे क्या प्रयोजन ?
प्रश्न : क्या वासना की उन्मत्तता के समय मुक्तात्मा स्वतंत्रता का उपयोग संसार में आने के लिए कर सकता है ?
उत्तर : नहीं कर सकता क्योंकि एक आदमी आग में हाथ मलने के लिए पहली बार स्वतन्त्रता का उपयोग कर सकता है। लेकिन जल जाने के बाद उपयोग करेगा, मुश्किल है। एक बच्चा है वह दिए पर हाथ रखकर को पकड़ सकता है। स्वतंत्रता का उपयोग उसने किया, हाप जल गया, अनुभव हुमा । अब दुबारा इस बच्चे से कम माता है कि विएं की को पकड़े, क्योंकि इसका