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- महावीर : मेरी मिन
यह मेरी मौलवी कि मैं चिल्लाया। यह मेरा चुनावया। यह उनकी मौज पांकि उन्होंने सुना या उनकी मौज पी किनहीं सुना। या उनकी मौन थी कि सुना बोर बनसुना कर दिया। इस बात में वे स्वतन्त्र थे। इससे भागे पूछने की कोई जरूरत ही नहीं।
। हम सब अपनी स्वतन्त्रता में जी रहे हैं और दुःख या सुख हमारे निर्णय हैं । और इसलिए बड़ी मौज है, और जिन्दगी बड़ी रसपूर्ण है। कहीं कोई रोकने वाला नहीं है, कहीं कोई मालिक नहीं है। हम ही मालिक हैं। और इतना समझ में बा जाए तो फिर और क्या समझाने को शेष रह जाता है ?
कोई निर्णायक है ही नहीं सिवाय आपके । वह आपका निर्णय है। अब जैसे कि नसरूद्दीन थैली लेकर भाग गया। वह आदमी यह भी निर्णय कर सकता है कि ठीक है, ले जाओ, हम नहीं आते पोछे और कभी न लौटे। वह उसका निर्णय है कि वह पीछा करता है और तब तक पीछा करता है जब तक पा नहीं लेता। लेकिन वह कह सकता है कि ठीक है, ले जाओगे तो हो सकता है कि तुम्हें खोजना पड़े कि मैं कहाँ गया। हालत यह हो जाए कि तुम खोजते थक जाओ, दुःखी हो जाओ, परेशान हो जाओ क्योंकि तुम कोई चोर तो ये नहीं । वह थैली तो लोटाना है।
प्रश्न : यह निर्णय करना कौन कराता है ? इसका कोई उत्तर नहीं ?
उत्तर : कोई नहीं कराता । आप करते हैं । स्वतन्त्रता का मतलब ही रही है कि आप निर्णायक हैं और आप हो निर्णय करते हैं ।
प्रश्न : प्रारम्प क्या है?
उत्तर : प्रारम्ष कुछ भी नहीं। अपने किए हुए निर्णय प्रारब्ध बन जाते हैं। जैसे कि मैंने एक निर्णय किया कि मैं इस कमरे में बैठेगा। तो एक ही बात हो सकती है कि या तो में इस कमरे में पैलूं, या बाहर बैठू । निर्णय करते ही प्रारम्ष शुरू हो जाता है । निर्णय का मतलब है कि मैं प्रारम्ष मिमित कर रहा हूँ। अब में एक ही काम कर सकता हूँ-बाहर बैठू कि भीतर । भीतर बैठता
तो यह प्रारम्भ हो गया। मेरा निर्णय शुरू हो गया। अब मैं बाहर नहीं हो सकता एक ही साथ । मगर बाहर जाऊंगा तो भीतर नहीं होऊंगा। भीतर के सुखममीवर मिलेंगे, बाहर के सुख दुख पाहर मिलेंगे। अब यह फिर मेरा प्रारम हो गया क्योंकि वो मैने निर्णय लिया हमें मोगा।