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महावीरः मेरी दृष्टि में महावीर जो कहते हैं, बुर जो कहते हैं, जीसस जो कहते हैं, कृष्ण जो कहते है 'वह शायद वही है जो निरन्तर मौजूद है । लेकिन उससे हमारा निरन्तर सम्बन्ध छूट जाता है। वह फिर चिल्ला-चिल्ला कर, पुकार-पुकार कर, उस ओर आंखें उठवाते हैं । आँखें उठ भी नहीं पातीं कि हमारी आँखें फिर वापिस लौट आती हैं।
इस अर्थ में अगर हम देखेंगे तो जब भी कोई व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होता है तो कहना चाहिए नया ही उपलब्ध होता है। सत्य कोई नया पुराना नहीं है लेकिन व्यक्ति को जब भी उपलब्ध होता है तो वह नया है। इस अर्थ में भी सत्य को नया कहा जा सकता है क्योंकि दूसरे का सत्य बासी हो जाता है
और हमारे लिए कभी काम का नहीं होता। हमारे लिए तो तब काम का होगा जब वह फिर नया होगा। ___ महावीर ने क्या नया दिया यह सवाल नहीं है क्योंकि अगर नया दिया भी होगा तो अब एकदम पुराना हो गया। सवाल यह नहीं है कि महावीर ने क्या नया दिया ? सवाल यह है कि सामान्य जन जैसा जीता है क्या महावीर उससे भिन्न जिए है। वह जीना बिल्कुल नया था। नया इस अर्थ में नहीं कि वैसा पहले कभी कोई नहीं जिया होगा। कोई भी जिया हो, करोड़ों लोग जिए हों, तो भी फर्क नहीं पड़ता। जब मैं किसी को प्रेम करता हूँ तो वह प्रेम नया ही है । मुझसे पहले करोड़ों लोगों ने प्रेम किया है लेकिन कोई भी प्रेमी यह मानने को राजी नहीं होगा कि मैं जो प्रेम कर रहा है, वह बासी या पुराना है । वह नया है । उसके लिए बिल्कुल नया है। और दूसरे का प्रेम किसी दूसरे के काम का नहीं है । वह अनुभूति अपने ही काम को है।
तो महावीर बिल्कुल हो अपने सत्य को उपलब्ध होते हैं, जो उन्हें उपलब्ध हुआ है, वह बहुतों को उपलब्ध हुआ होगा, बहुतों को उपलब्ध होता रहेगा। लेकिन उस उपलब्धि पर किसी व्यक्ति की कोई सोल-मोहर नहीं लग जाती। यानी में अगर कल सुबह उठकर सूरज को देखू तो आप आकर मुझसे यह नहीं कह सकते हैं कि तुम बासी सूरज को देख रहे हो क्योंकि मैं भी इस सूरज को देख चुका है। इसे करोड़ों लोग देख चुके हों तब भी सूरज बासी नहीं हो जाता आपके देखने से । और जब मैं देखता हूँ तब नया ही देखता हूँ । उतना ही ताजा, जितना ताजा आपने देखा होगा। सूरज पर कुछ बासे होने की छाप नहीं बन जाती । सत्य पर भी नहीं बन जातो.।
ठीक है, प्रेम की चर्चा बहुत लोगों ने की है, बहुत लोग करते रहेंगे। लेकिन फिर भी जब कोई प्रेम को उपलब्ध होगा तब वह नया ही उपलब्ध