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प्रालोसप्रवचन-२१
पुराना हो जाएगा। जो आज पुराना दीखता है, वह कल नया था। असल में सत्य के सम्बन्ध में नये और पुराने शब्द एकदम व्यर्थ है । नया वह होता है जो जन्मता है, पुराना वह होता है जो बूढ़ा होता है। सत्य न जन्मता है, न बूढ़ा होता है, न मरता है।
लहर नयी हो सकती है, लहर पुरानी भी हो सकती है। लेकिन सागर न नया है, न पुराना है । बादल नये हो सकते हैं, पुराने भी हो सकते हैं । लेकिन आकाश न नया है न पुराना है। असल में आकाश वह है जिसमें नया बनता पुराना होता, पुराना मिटता नया बनता है। लेकिन स्वयं आकाश म तो नया है न पुराना है। सत्य भी नया पुराना नहीं है । इसलिए जब भी कोई दावा करता है कि सत्य प्राचीन है या नया तब भी वह मूर्खतापूर्ण दावा करता है । नये-पुराने के दावे ही नासमझी से भरे है।
दो हो तरह के दावेदार दुनिया में हुए हैं। एक वे हैं जो कहते हैं कि सत्य पुराना है, हमारी किताब में लिखा हुआ है। हमारी किताब इतने हजार वर्ष पुरानी है । दूसरे दावेदार है वो कहते हैं कि सत्य बिल्कुल नया है क्योंकि किसी किताब में नहीं लिखा हुआ है। लेकिन सत्य के सम्बन्ध में ऐसे कोई दावे नहीं किये जा सकते। फिर भी क्या कहा जा सकता है ? फिर यही कहा जा सकता है कि जो सत्य निरन्तर है उससे भी हमारा निरन्तर सम्बन्ध नहीं रहता । सम्बन्ध कमी-कभी होता है। सत्य निरन्तर है। सत्य एक निरन्तरता है, शाश्वतता है, लेकिन जरूरी नहीं कि आकाश हमारे ऊपर निरन्तर है तो हम आकाश को देखते ही रहें। और अगर कोई ऐसा गांव हो जहाँ के सारे लोग जमीन की ओर देखते ही वक्त गुजारते हों और उस गांव में किसी को पता ही न हो कि आकाश भी है और अगर एक आदमी आकाश की ओर आंख उठाए और बिल्ला, कर लोगों को पुकारे कि देखते हो आकाश है, तुम क्यों जमीन की ओर आँखें गड़ाये हुए मरे जा रहे हो तो शायद उनमें से कोई कहे कि इसने पड़ा नया सत्य बताया है या शायद उनमें से कोई कहे कि इसमें क्या नया है। हमारे बापदादों ने, आकाश की बातें किताबों में लिखी है। लेकिन ये दोनों ही ठीक नहीं कह रहे।
सवाल यह नहीं है कि आकाश के सम्बन्ध में कुछ कहा गया है या नहीं कहा गया है। सवाल यह भी नहीं है कि आकाश के सम्बन्ध में जो कहा गया है वह नया है या पुराना। सवाल यह है कि क्या उससे हमारा निरन्तर संबंध है।