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प्रश्नोत्तर-प्रवचन- ११
होगा । महावीर जब प्रेम को उपलब्ध हुए हैं, ही उपलब्ध हुए हैं । सत्य के सम्बन्ध में अनुभूति के सम्बन्ध में नया पुराना होता है बहुत नया पुराना होता है। महावीर ने जो अभिव्यक्ति दी है
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जिसे अहिंसा कहते हैं, तो वे नये तो नया पुराना नहीं होता लेकिन और अभिव्यक्ति के
सम्बम्ध में तो अहिंसा को वह
अब
एकदम अनूठी और नयी है। शायद वैसी किसी ने भी पहले नहीं दी थी । अभिव्यक्ति नयी हो सकती है क्योंकि अभिव्यक्ति पुरानी पड़ जाती है महावीर की अभिव्यक्ति भी पुरानी पड़ गई है। कल पुराना पड़ जाएगा। कल तो बहुत दूर है, पुराना हो गया ।
आज अगर मैं कुछ कहूँगा अभी मैंने कहा और वह अभी
अभिव्यक्ति नयी भी होती है, अभिव्यक्ति पुरामी भी पड़ जाती है । 'सत्य' न नया होता है और न पुराना पड़ता है। लेकिन फिर भी जब सत्य किसी व्यक्ति को उपलब्ध होता है तो एकदम नया ही उपलब्ध होता है - ताजा, युवा, अछूता, एकदम कुँवारा। इसलिए जिसको उपलब्ध होता है, वह अगर चिल्ला कर कहता है कि नया सत्य मिल गया तो उस पर नाराज भी नहीं होना है । क्योंकि उसे ऐसा ही लगा है। उसके जीवन में पहली बार ही यह सूरज निकला है । किसी और के जीवन में निकला हो, इससे कोई सम्बन्ध ही नहीं है । उसे बिल्कुल ही नया हुआ है। वह एकदम ताजा हो गया है उसके स्पर्श से कि वह चिल्लाकर कह सकता है कि यह बिल्कुल नया है ।
शास्त्रों में भी खोजी जा सकती है वह बात जो उसे हुई है । और शास्त्र का अधिकारी कह सकता है कि क्या नया है ? यह तो हमारी किताब में लिखा है । मगर सारी किताबों में भी लिखा हो तब भी जब व्यक्ति को सत्य मिलेगा तो उसकी प्रतीति ताजे की, नये की उपलब्धि की ही होगी । उसे हम यों भी कह यह हमारे कहने की
सकते हैं कि सत्य सदा जीवन्त है, ताजा और नया है ।
दृष्टि पर निर्भर करता है कि हम क्या कहते हैं ।
मेरी अपनी समझ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को सत्य नया ही उपलब्ध होता है । सत्य सदा से है लेकिन जब कोई व्यक्ति सत्य से सम्बन्धित होता है तब सत्य उसके लिए नया हो जाता है और प्रत्येक व्यक्ति की अनुभूति जिसे वह अभिव्यक्त करता है नयी होती है क्योंकि वैसो अभिव्यक्ति कोई दूसरा नहीं दे सकता क्योंकि वैसा कोई दूसरा व्यक्ति न हुआ है, नं है, न हो सकता है ।
मुब हम कितनी साधारण सी बात समझते हैं एक व्यक्ति का पैदा होना । मेरे पैदा होने में या आपके पैदा होने में कितना बड़ा जगत् सम्बन्धित है, इसका