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________________ ६७२ महावीर : मेरी दृष्टि में होता है कि पति कमी पत्नी को सताएगा भी, कभी प्रेम भी करेगा। सताएगा फिर प्रेम करेगा, प्रेम करेगा फिर सताएगा। पत्नी भी सताएगी। एक दिन प्रेम करती दिखाई पड़ेगी, दूसरे दिन सताती दिखाई पड़ेगा। सुबह उपद्रव मचाएगी, सांझ पैर दाबेगी। यह कुछ समझ में आना मुश्किल होता है कि यह दोनों बातें एक साथ क्यों चलती है। और ध्यान रहे कि जिससे हमने थोड़ी देर प्रेम किया, थोड़ी देर बाद हम उसको सताएंगे। अक्सर यह होता है कि पति-पत्नी लड़ते-लड़ते प्रेम में आ जाते हैं और प्रेम में आते-आते लड़ना शुरू कर देते हैं। यह तो रही साधारण व्यक्ति को बात लेकिन जो असाधारण ( एबनार्मल ) व्यक्ति है वह या तो सुख की दिशा में चला जाता है या दुख की दिशा में चला जाता है । लेकिन सुख की दिशा में जाने से शायद वह अन्ततः परमात्मा तक पहुंच जाता है क्योंकि परमात्मा परम सुख है । और दुःख की दिशा में जाने से शायद वह शैतान तक पहुंच जाता है क्योंकि शैतान होना अन्तिम दुःख है। यहां एक और बात को भी समझ लेना जरूरी है कि धार्मिक आदमी इन कामों को प्रकट में करेगा; अधार्मिक आदमी इनको अप्रकट में करेगा। धार्मिक आदमी ज्यादा खतरनाक भी है क्योंकि वह प्रकट में करके उनको फैलाता भी है, उनका विस्तार भी करता है। वह लोगों में यह भाव भी पैदा करता है कि जो वह काम कर रहा है वे कोई विक्षिमता के नहीं। वे काम बड़ी साधना के हैं। और पागल आदमी को यह ख्याल में आ जाए कि वह ऊंची बात कर रहा है तो पागलपन के ठीक होने की सम्भावना ही नहीं रहती। हिन्दुस्तान में पागलों की संख्या कम है, यूरोप में पागलों की संख्या ज्यादा है। लेकिन अभी संन्यासी, साधुनों और अपने को सताने वालों की संख्या हिन्दुस्तान के पागलों से जोड़ दी जाए तो संख्या बराबर हो जाती है। वहाँ जो आदमी पागल है वह पागल है; जो आदमी पागल नहीं है वह पागल नहीं है । यहाँ पागल और गैर पागल के पीछे एक रास्ता दूसरा ही है। जबलपुर में एक भादमी है जो एक सौ आठ बार बर्तन साफ करेगा तब पानी भर कर लाएगा। यह आदमी यूरोप में हो तो पागल समझा जाएगा। यह आदमी हिन्दुस्तान में है तो धार्मिक समझा जाता है। लोग कहते हैं कि परम पार्मिक आदमी है, शुद्धि का कैसा ख्याल है। यह आदमी एक सौ माठ बार बर्तन साफ करता है। और इसमें भी अगर कोई स्त्री निकल गई बीच में तो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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