SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पस्तोसर प्रवचन-२२ ६७१ नहीं आता है कि अगर प्रेम में कोई व्यक्ति किसी स्त्री को नाखून खपा रहा है, नोच रहा है तो किसी अंश में यह सैडिज्म है। अब एक आदमी जरा इसमें आगे चला गया, उसको नाखून काफी नहीं मालूम पड़ते, तो उसने कांटे बना रखे हैं । लेकिन मजे की बात यह है कि दो सादे' से सैकड़ों स्त्रियों का सम्बन्ध रहा । वह बहुत अद्भुत आदमी था । उसको न मालूम कितनी स्त्रियाँ प्रेम करती थीं-वह ऐसा आदमी था। वह बड़ा प्रतिभाशाली भी था। जिन स्त्रियों ने उसको प्रेम किया उनका भी कहना है कि जो आनन्द उसके साथ आया वह कभी किसी के साथ नहीं आया । अब यह बड़े मजे की बात है कि उसका कोड़ा मारना भी स्त्रियां पसंद करती थीं। कारण कि वह कोड़े मार कर इतनी वेदना पैदा कर देता कि वे दौड़ रही हैं, वह कोड़े मार रहा है, कांटे चुमो रहा है, बाल खींच रहा है, नाखून चुभो रहा है, काट रहा है तो स्त्रो के पूरे शरीर को वह इतना कम्पन से भर देता कि जब वह सेक्स में जाता उसके साथ तो स्त्री आनन्द की चरम सीमा को उपलब्ध होती जो कि साधारणतः स्त्रियां महीं छ पातीं । सम्भोग में सो में से निन्यानवें स्त्रियाँ आनन्द की चरम सीमा को कभी नहीं पहुँच पातीं क्योंकि उनका पूरा शरीर ही नहीं जग पाता । तो इतना सताने के बाद भी वे उसको पसंद करतीं। वह आदमी अद्भुत था। और उसका कहना था कि जब तक मैं सता न लूँ तब तक मुझे कुछ आनन्द आता ही नहीं। ठीक डी सादे जैसा एक दूसरा आदमी था 'मेसोच' जिसके नाम पर 'मैसोचिज्म' चला है। वह अपने को सताता था । और सता कर बड़ा सुखी होता था। असल में हमारे पास जो शक्ति बच जाती है, या तो हम उसे सुख को दिशा में गतिमान कर सकते हैं या फिर दुःख की दिशा में । दो ही दिशाएं हैं । तीसरी कोई दिशा नहीं। आप ठहर नहीं सकते बीच में। या तो आप सुख की दिशा में अपने को ले जाएं, नहीं तो फिर शक्तियों दुःख की दिशा में जाना शुरू हो जाएंगी। ____ अब एक तीसरा आदमो भी है जो थोड़ा अपने को भी सताता है, थोड़ा दूसरे को भी सताता है। सताने के कई ढंग हो सकते हैं जो हमको ख्याल में नहीं आते । असल में आदमी कैसे-कैसे सताता है, वह हमें पता ही नहीं चलता। जब वह सीमा के बाहर हो जाता है तब पता चलना शुरू होता है कि मामला गड़बड़ हो गया, यह आदमी कुछ गड़बड़ हो गया। मैं यह कह रहा है कि दो ही दिशाएं हैं। अगर आप बीच में ठहरते हैं तो दोनों दिशाओं का गोलमोल ' आपके व्यक्तित्व में होगा। कभी आप सताएंगे, कभी न सताएंगे। इसलिए यह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy