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महावीर : मेरी दृष्टि में
या तो ये दुःख को सताएंगी या दूसरे को सताएंगी। और मजे की बात यह है कि जो मजा आएगा वह सेक्सुअल जैसा ही है। यानी जो आदमी अपने को कोड़े मार रहा है, वह कोड़े मार कर उतनी शक्ति रिलीज कर देगा जितनी सेक्स से रिलीज होती तो सुख देती । उतनी शक्ति रिलीज होने पर वह थक कर विश्राम करेगा । उसको बड़ा आराम मिलेगा । हमको लगेगा कि उस आदमी ने बड़ा कष्ट दिया अपने को । उसके लिए एक तरह का आराम है क्योंकि वह शक्ति रिलिज हो गई ।
ऐसा आदमी खुद को दुःख देने में सुख पाने लगेगा। यह एक तरह का खुद को दुःख देने में सुख पाना है । जो आदमी खुद को दुःख देने में सुख पाने लगेगा, वह दूसरों को दुःख देने में भी सुख पाने लगेगा । वह दूसरों को भी सताएगा । वह दूसरों को भी परेशान करेगा । वह दूसरों को भी परेशान करने के कई उपाय खोजेगा |
आपने पूछा है कि क्या धार्मिक विकृत परवर्ट) व्यक्ति और साधारण विकृत व्यक्ति में कोई फर्क है । मेरा कहना है कि थोड़ा फर्क है । साधारण विकृत व्यक्ति उस धार्मिक विकृत व्यक्ति से अच्छी हालत में इसलिए है कि उसको भी यह बोध निरन्तर होगा कि कुछ पागलपन हो रहा है, कुछ गलती हो रही है, कुछ भूल हो रही है, मैं कुछ बीमार हूँ । धार्मिक विकृत को यह बोध भी नहीं होता । वह समझता है कि उससे गलती हो ही नहीं रही। वह साधना कर रहा है। वह सहो कर रहा है । और जो वह कर रहा है उसके लिए उसने न्याययुक्त कारण खोज रखे हैं । इसलिए वह कभी अपने को पागल, विक्षिप्त या रुग्ण नहीं समझेगा । दूसरी बात यह है कि साधारण विक्षिप्त आदमी अपनी विक्षिप्तता को छिपाएगा, प्रकट नहीं करेगा। हो सकता है कि वह रात में अपनी पत्नी की गर्दन दबाए, कांटे चुभोए ।
'डी सादे' एक बहुत बड़ा लेखक हुआ । उसके प्रेम करने का ढंग हो यही था । उसी से दुःखवादी (सैडिस्ट) शब्द बना । वह जब भी किसी स्त्री को प्रेम करता उसके लिए कोड़ा, चाकू, कांटे अपने साथ रखता । एक ही बैग था उसके पास । जब वह किसी स्त्री को प्रेम करता तब वह दरवाजे बन्द कर देता । उसका पहला काम यह था कि वह उसको नग्न कर देता और कोड़े मारना शुरू कर देता । वह भागती और चिल्लाती । वह जितनी चीखती और चिल्लाती उता उसको आनन्द आने लगता । वह कांटे चुभोता। आम तौर से हमको ख्याल में