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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२२ ६६९ आदमी नहीं करता । अमीर आदमी को अक्सर गोद लेने पड़ते हैं । उसका कारण है कि गरीब आदमी के पास एक ही सुख है बाकी सब दुःख ही दुःख है। इस दुःख से बचने के लिए एक ही मौका है उसके पास कि वह कामवासना में चला जाए। एकमात्र सुख का जो अनुभव उसे हो सकता है, वह वही है। अमीर आदमी को और भी बहुत सुख है । सुख फैल जाता है तो कामवासना तीव नहीं रह जाती । उसकी तीव्रता कम हो जाती है । सुख कई जगहों में फैल जाता है। वह बहुत तरह के सुख लेता है-संगीत का भी, साहित्य का भी, नृत्य का भी, विधाम का भी। उसका सुख और तलों पर फैलता है। फैलने की वजह से काम की तीव्रता कम हो जाती है। गरीब और किसी तरह के सुख नहीं लेता। बस एक ही तरह का सुख रह जाता है। वह सेक्स भर उसको सुख देता है। बाकी सब दुःख हैं दिन भर । सिर्फ मेहनत, गिट्टी फोड़ना, तोड़नावही सब है। सेक्स है प्रकृति के द्वारा दिया गया सुख । अगर कोई आदमी इसमें ही जीता चला जाए तो सामान्यतः जीवन दुःख होगा, सेक्स सुख होगा । और आदमी सारे दुःख सहेगा सिर्फ सेक्स के सुख के लिए । लेकिन अगर इससे ऊपर उठना शुरू हो जाए यानी और सुख खोजें, वहीं धर्म का जगत् है, सेक्स के ऊपर सुख खोजने का जगत् है । जैसे-जैसे सेक्स के ऊपर सुख मिलना शुरू होता है वह शक्ति जो सेक्स से प्रकट होकर सुख पाती थी, नये द्वारों से झांक कर सुख पाने लगती है और धीरे-धीरे सेक्स के द्वार से विदा लेने लगती है, ऊपर उठने लगती है। इसको कोई कुंडलिनी कहे, कोई और नाम दे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मामला केवल इतना है कि सेक्स सेण्टर के पास सारी शक्ति इकट्ठी है। वह रिजरवायर है। अगर आप शक्ति को ऊपर ले जा सकते हैं तो वह रिजरवायर नीचे की तरफ शक्ति को फेंकना बंद कर देगा। और अगर आप ऊपर नहीं ले जा सकते तो वह रिजरवायर रिलीज करेगा । और बड़े मजे की बात है कि सेक्स का जो सुख है साधारणतः वह रिलीज का ही सुख है । इतनी शक्ति इकट्ठी हो जाती है कि वह भारी हो जाती है तो वह उसको रिलीज कर देता है । अब समझ लो एक आदमी ऊपर भी नहीं गया और सेक्स के रिजरवायर को भी उसने रिलीज करना बंद कर दिया तो अब उसकी शक्तियां नीचे उतरनी शरू होंगी, सेक्स से भी नीचे क्योंकि सेक्स सुख की सीमा है। उसके नीचे दुःख की सीमाएं है। और ये शक्तियां क्या करेंगी ? अब ये किया क्या करेंगी?
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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