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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२२ टूट गई पहली श्रृंखला । वह फिर एक से शुरू करेगा। यह आदमी धार्मिक है। कई लोग इसके पैर छुएंगे और कहेंगे कि आदमी परम धार्मिक है। कभी-कभी उसका दिन-दिन लग जाएगा इसी में क्योंकि वह नल पर बर्तन धो रहा है, और स्त्री फिर निकल गई, अशुद्ध हो गया बर्तन । अब वह फिर शुद्ध कर रहा है । अब यह आदमी अगर यूरोप में हो तो फौरन पागलखाने में भेज दिया जाएगा। मंगर यहां वह मन्दिर में बैठ जाएगा, पुजारी हो जाएगा, साधु हो जाएगा। इसको आदर मिलने लगेगा। तो धार्मिक पागलपन ज्यादा खतरनाक है। महावीर के जीवन की एक घटना है। महावीर ने सब तरह के उपकरण बन्द कर दिए हैं। वह साथ में कोई सामान नहीं रखेंगे क्योंकि साधन भी एक बोझ हो जाता है । जिस व्यक्ति ने सारे जीवन को अपना ही मान लिया है वह समझ गया कि अब ठीक है, कल सुबह जो होगा, होगा। तो महावीर कुछ साथ न रखेंगे। कौन बोझ को ढोता फिरे ? वह बाल बनाने का उस्तरा भी नहीं रखते। जब बाल बहुत बढ़ जाते हैं तो उनको उखाड़ देते हैं । महावीर के लिए यह बाल का उखाड़ना भी विक्षिप्तता का कारण नहीं है। यह अत्यन्त सहज बात है क्योंकि कुछ रखना नहीं है साथ । सरलतम यही है कि बाल उखाड़ दिए, साल-दो साल में बढ़ गए, फिर उखाड़ दिए, यात्रा चलती रही। इतना भी सामान साथ क्यों रखकर बांधना ? क्यों बोझ लेना है क्योंकि सामान का बोझ नहीं है गहरे में लेकिन सामान को पकड़ कर रखने में सुरक्षित होने की कामना है । और वह असुरक्षित ही पूरा जीते हैं। कोई सुरक्षा का भाव नहीं, कुछ रखने का भाव नहीं। जहाँ जो मिल गया वही हाथ में लेकर खा लेते हैं । कोन बर्तन का उपद्रव साथ में करे ? लेकिन महावीर का यह बाल उखाड़ना कुछ पामलों के लिए बहुत आकर्षक मालूम पड़ा होगा। पागलों का एक वर्ग है जो बाल उखाड़ता है, जो बाल उखाड़ने में रस लेता है। वह भी एक तरह का सताना है अपने को। तो इसमें कठिनाई नहीं है कि महावीर का बाल उखाड़ना देखकर कुछ पागल बाल उखाड़ने में रस लेने लगे हों, महावीर के पीछे साधु हो गए होंगे इसलिए कि अब बाल उखाड़ने से कोई उनको पागल नहीं कह सकता। ___ महावीर नग्न हो गए हैं क्योंकि अगर कोई व्यक्ति इतना सरल हो जाए, इतना निर्दोष हो जाए कि उसे नग्नता का बोध ही न रहे तो कोई बात नहीं। खुद को नग्नता का बोध हमें तभी तक होता है जब तक हम दूसरे के शरीर को नग्न देखना चाहते हैं। जब तक हमारा शरीर कोई नग्न देख ले इससे भयभीत ४३.
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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