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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २२
मैं छोड़ने की भाषा के ही विरोध में हूँ। बड़ा घर पाया, छोटा घर छूट गया । लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह उसके दुश्मन हो गए। इसका भैतलब सिर्फ यह है कि अब छोटे घर में रहना असम्भव हो गया है । जब बड़ा घर मिल गया है तो छोटा घर उसका हिस्सा हो गया है ।
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मैं मानता हूँ कि प्रत्येक चीज भ्रान्ति ला सकती है। यह सवाल नहीं है । अगर इसमें भी चुनाव करना हो तो मैं कहता हूँ कि भोग भी भ्रान्ति ला सकता है । अगर भोग या त्याग दोनों में ही चुनाव करना हो तो मैं कहता हूँ कि फिर भोग ही ठीक है क्योंकि वह जीवन के स्वस्थ, सहज और सरल होने का प्रतीक है । और यह भी बड़े मजे की बात है कि जो आदमी भोगने चलेगा उससे त्याग धीरे-धीरे अनिवार्य हो जाएँगे । वह जैसे-जैसे भोग में उतरेगा वैसे-वैसे बड़े भोग की सम्भावनाएँ प्रकट होंगी । और त्याग उससे अनिवार्य हो जाएंगे । लेकिन जो आदमी त्याग करने चलेगा, उससे पुराने भोग की सम्भावनाएँ छिन जाएंगी और नये भोग की सम्भावनाएं प्रकट नहीं होंगी। वह आदमी सूखता चला जाएगा । यानी यह बात सच है कि ज्यादा खाना भी खतरनाक है, न खाना भी खतरनाक है । फिर भी अगर दोनों में चुनाव हो तो मैं कहूँगा ज्यादा खाना चुन लेना क्योंकि न खाने वाला तो मर ही जाएगा नाहक । ज्यादा खाने वाला बीमार ही पड़ सकता है । ओर ज्यादा खाने वाला आज नहीं, कल इस अनुभव को पहुँच जाएगा कि कम खाना सुखद है। लेकिन न खाने वाला कभी इस अनुभव पर नहीं पहुंचेगा क्योंकि वह मर ही जाएगा ।
से
लौटने का कोई
मेरा कहना यह है कि अगर भूल भी चुननी हो तो सोच-समझकर चुमनी चाहिए । भूल सब जगह सम्भव है क्योंकि आदमी अज्ञान में है । इसलिए जो कुछ भी पकड़ता है तो वह भ्रान्ति ला सकता है लेकिन फिर भी भ्रान्ति ऐसी चुननी चाहिए जिससे लोटने का उपाय हो । जैसे न खाने उपाय नहीं है, लेकिन ब्यादा खाने से लोटने का उपाय है। साफ समझ रहे है न ? ज्यादा खाने से लोटने का उपाय है खुद दुःख देगा फिर लौटना पड़ेगा। लेकिन न खाना दुःख नहीं देगा, समाप्ति कर देगा, मिटा ही डालेगा। उससे लौटने की सम्भावना कम हो जाएगी ।
मेरा मतलब आप और ज्यादा साना
फिर यह बात तो ठीक ही है कि सभी शब्द हमें भरमा सकते हैं, भटका सकते हैं क्योंकि हम शब्दों से वही अर्थ निकाल लेना चाहते हैं, जो हम चाहते. हैं कि निकले। हम यह नहीं देखना चाहते कि जो कहा गया है वह हमेशा