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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में हो, ऐसे कहीं ज्ञान मिला है किसी को, तो वे कहेंगे : तुम अपने रास्ते पायो, क्योंकि मान को अगर माना है तो मेरी शर्तों पर, मैं कोई ज्ञान की शर्ते मानने वाला नहीं हूँ। मेरी शों पर, मैं जैसा है, उसको वैसे में आना है तो ठीक । अगर कोई व्यक्ति इतना हिम्मतवर और साहसी है तो परमात्मा को उसी की शता पर आना होगा। कोई रुकावट उसमें नहीं पड़ सकती। यह अगर स्याल में आ जाए तो व्यक्ति स्वातंत्र्य की धारणा स्पष्ट हो जाती है।। अब मैं कहता हूँ कि किसी भी आसन में सोए, बैठे, लेटे, खड़े ध्यान हो सकता है। यह अपने-अपने चुनाव की बात है कि उसके लिए कैसा सरल हो सकता है। क्योंकि गोदोहासन तक में एक व्यक्ति मोष में जा चुका है। इसलिए अब कोई चिन्ता की बात नहीं। अब किसी भी आसन में यह घटना घट सकती है । लेकिन शायद ही कोई जैन मुनि गोदोहासन में बैठा मिल जाए क्योंकि माजकल का जैन मुनि परम्परागत ढंग बांध कर बैठा है। उसको चलाए जाता है। महावीर का गोवोहासन परम्परा को तोड़ने का प्रतीक है सिर्फ । महावीर जैसा व्यक्ति छोटी-मोटी चीजों में भो परम्परा को तोड़ देना चाहेगा। यानी ऐसी छोटी बातों में भी वह कहेगा, नहीं, मैं जैसा हूँ वैसा हूँ। और प्रत्येक व्यक्ति में इतना साहस आना चाहिए तो ही व्यक्ति साधक हो सकता है । और जिस दिन परम साहस प्रकट होता है उसी दिन सिद्ध होने में क्षण भर को भी देर नहीं लगती। प्रश्न : आपने पिछले दिनों महावीर के सम्बन्ध में एकान्त की बात कही पी। तो क्या महावीर का आत्मदर्शन भी एकान्त ही था, सम्पूर्ण नहीं पा ? उत्तर : इस सम्बन्ध में दो बातें समझ लेनी चाहिए। एक शब्द है 'दृष्टि' और दूसरा शब्द है 'दर्शन' । वृष्टि एकांकी, अधूरी और खण्ड-खण्ड होगी। दृष्टि का मतलब है कि मैं एक जगह खड़ा है, वहाँ से जैसा दिखाई पड़ रहा है, जो दिखाई दे रहा है, वह महत्त्वपूर्ण है और जिस जगह में खड़ा हूँ वह जगह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। जहाँ से खड़े होकर मैं देख रहा है, जैसा मुझे दिखाई पड़ेगा वह दृष्टि होगी और इसी के सम्बन्ध में दर्शन शब्द को समझना बड़ा कीमती है। दर्शन का मतलब है जहाँ सब वृष्टियां मिट गई, जहाँ मेरे खड़े होने की कोई जगह न रही, सब में जहाँ में ही न रहा। वहाँ को होगा, इसका नाम वर्ष है। वन सदा ही समय होगा। दृष्टि सवा ही सण्डित होगी। तो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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