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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१ दूसरी बात यह कि जगत् में सहज कुछ भी नहीं है । परिस्थिति अनुकूल, प्रतिकूल, व्यक्ति के सोचने, समझने का ढंग, जीने की व्यवस्था अलग-अलग स्थितियां ला सकती है । जैसे आम तौर पर महावीर खड़े होकर ध्यान करते हैं । वह भी साधारण नहीं लगता क्योंकि साधारणतः लोग बैठ कर ध्यान करते हैं। शायद बड़े होकर ध्यान करने में ज्यादा सरल पड़ता हो क्योंकि उसमें मूर्धा मोर तन्द्रा का कोई उपाय नहीं है और हो सकता है कि उकडू बैठने में भी वही दृष्टि हो । उकडू बैठ कर भी आप सो नहीं सकते। महावीर कहते हैं : भीतर पूर्ण सजग रहना है । पूर्ण सजगता के लिए अथक श्रम जरूरी है। हो सकता है कि निरन्तर प्रयोग से उन्हें पता चला हो कि उकडू बैठ कर नींद आने का कोई उपाय नहीं तो वह उकडू बैठने लगे हों। फिर महावीर का मस्तिष्क परम्परागत नहीं है। महावीर का मार्ग परम्परा-मुक्त ही नहीं बल्कि एक अर्थ में परम्परानिरोषक भी है। वे किसी भी चीज में किसी का अनुकरण नहीं करते। उन्हें जो सरल और आनन्दपूर्ण लगेगा, वह वैसा ही करेंगे। जगत् में किसी ने किया हो या न किया हो, यह सवाल नहीं है। हम सब परम्परा के अनुयायी है । सब जैसे बैठते हैं, वैसे ही हम बैठते हैं । सब जैसे खड़े होते हैं, वैसे ही हम खड़े होते हैं। सब जैसे वस्त्र पहनते हैं, वैसे ही हम वस्त्र पहनते हैं । सब जैसी बातें करते है, वैसी ही हम बातें करते हैं। क्योंकि सबके साथ हमें रहना है और सबसे भिन्न होकर खड़े होना अत्यन्त कठिन है इसलिए सबके साथ चलना सरल मालुम पड़ता है। ___ महावीर इस तरह के व्यक्ति नहीं हैं । वे कहते हैं : सब क्या करते हैं, यह सवाल नहीं है । मुझे क्या करने जैसा लगता है यह सवाल है । और हो सकता है कि मुझसे पहले किसी को भी करने जैसा न लगा हो और हो सकता है कि मेरे बाद भी किसी को करने जैसा न लगे, लेकिन जो मुझे करने जैसा लगता है, उसका मुझे अधिकार है । मैं वैसा ही जिऊंगा; वैसा ही करूंगा। इन अर्थों में वह निपट व्यक्ति-स्वातन्त्र्य के अपूर्व पक्षपाती हैं। ऐसी-ऐसी बातों में भी, जिनमें कि हम कहेंगे कि इनमें स्वातंत्र्य की क्या जरूरत है। __ यह भी समझ लेना जरूरी है इस प्रसंग में कि हमारे शरीर की, और हमारे मन की दशाओं के बीच में एक तरह का तादात्म्य हो जाता है। जैसे आपने देखा होगा कि अगर कोई आदमी चिन्तित है' तो वह सिर खुजलाने लगेगा। सभी नहीं खुजलाने लगते । कोई चिन्तित होगा तभी सिर खुजलायेगा । अगर यह आवमी बिना कारण भी सिर खुजलाने लगे तो आप पाएंगे कि वह चिन्तित
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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