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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में फिर महावीर की एक धारणा और अद्भुत है। महावीर कहते हैं जितना O कम से कम पृथ्वी पर दबाव डाला जाए उतना अच्छा है। क्योंकि उतनी कम हिंसा होने की सम्भावना है। महावीर रात सोते हैं तो करवट नहीं बदलते क्योंकि जब एक हो करवट सोया जा सकता हो, तो दूसरी करवट विलासपूर्ण है । अकारण दूसरी करवट लेने में कोई चींटी, कोई मकोड़ा मर सकता है । किसी वृक्ष के तले, जंगल में वह सो रहे हैं। करवट बदली है । चींटियाँ मर सकती हैं । तो महावीर एक ही करवट सो लेते हैं । और दूसरी करवट बदलते नहीं रात भर । ऐसा जो व्यक्ति है, वह उकडू ही बैठता रहा होगा । 1 ६३६ जीवन में उनकी जो दृष्टि है, वह यह है कि क्यों व्यर्थ किसी के जीवन को सोतेनुकसान पहुँचाएँ । सारी पृथ्वी पर लोग अलग-अलग ढंग से उठते-बैठते, जागते, खाते-पीते हैं । जो हमें बिल्कुल सहज लगता है, वह दूसरे को बिल्कुल असहज लगेगा । तुम हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हो, बिल्कुल सहज लगता है । कुछ लोग हैं जो जीभ निकाल कर नमस्कार करते हैं । दो आदमी मिलेंगे तो दोनों जीभ निकालेंगे । अब हम सोच भी नहीं सकते कि किसी को नमस्कार करो तो जीभ निकालो। लेकिन दो आदमी मिलें तो हाथ जोड़ें यह कोन सी बात है । अगर हाथ जोड़े जा सकते हैं तो जीभ भी निकाली जा सकती है । कुछ कीमों में जब आदमी मिलते हैं तो नाक से हैं । यह बिल्कुल उनके लिए सहज मालूम होगा सड़क पर नाक से नाक लगाते देखें तो हमें हैरानी होगी कि हो गया है। पश्चिम में चुम्बन सहज-सरल सी बात है। ऊहापोह की बात है कि कोई आदमी सड़क पर दूसरे आदमी को ले । जो चूम अभ्यास में हो जाता है वह सहज लगने लगता है । जो अभ्यास में नहीं है वह . असहज लगने लगता है । । कुछ दिमाग खराब हमारे लिये भारी नाक रगड़कर नमस्कार करते लेकिन हम दो आदमियों को महावीर अहिंसा की दृष्टि से दो पंजों पर बैठते रहे होंगे। सर्वाधिक, न्यूनतम हिंसा उसमें है । दूसरा उनके लिए यह सहज भी हो सकता है। अगर दस आदमियों को रात सोते देखें तो आप उन्हें अलग-अलग ढंग से सोते देखेंगे । चूंकि अभी अमेरिका में एक प्रयोगशाला बनाई गई है जिसमें अब तक वे दस हजार लोगों को सुलाकर देख चुके हैं। कोई बीस साल से परीक्षण चलता है जिसमें अजीब-अजीब नतीजे निकाले गए हैं। कोई दो आदमी एक जैसे सोते नहीं । सोने का ढंग, उठने का ढंग अपना-अपना है ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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