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प्रश्नोत्तर- प्रवचन- २१
छोटा सा हिस्सा है । जिन्दगी में हम भी क्या करते हैं। एक टुकड़े को उठा लेते हैं और उस टुकड़े को फैला कर पूरी जिन्दगी को जांचने चल पड़ते हैं । मुश्किल है; ऐसा नहीं जांचा जा सकता। पूरी जिन्दगी को देखना होगा और पूरी जिन्दगी को देखेंगे तो हम एक टुकड़े को भी समझ सकते हैं । नहीं तो यह टुकड़ा भी हमारी समझ में नहीं आ सकता ।
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प्रश्न : ध्यान के लिए शुद्धीकरण की आवश्यकता है और जब भी किसी का मन केन्द्र पर है, तो उसकी बाह्य क्रिया, उठना-बैठना अनायास स्वयं हो जाती है। जब महावीर ध्यान के लिए बैठते हैं तो कुकुरासन और गोदोहासन यह विचित्र बात क्यों ?
उत्तर : यह भी समझने जैसी बात है। महावीर को ज्ञान भी हुआ गोदोहासन में । जैसे कोई गाय को दोहते वक्त बैठता है, ऐसे बैठे-बैठे महावीर को परम ज्ञान की उपलब्धि हुई । यह बड़ा अजीब आसन है। न तो वह गाय दोह रहे थे, गाय भी दोह रहे होते तो एक बात थी । वह गाय भी नहीं दोह रहे थे । बैठे थे ऐसे । क्यों बैठे थे ? ऐसे कोई साधारणतः बैठता नहीं । यह बड़ी विचित्र स्थिति मालूम पड़ती है । इसे समझना चाहिए । इसमें तीन बातें समझनी जरूरी हैं ।
पहली बात तो यह कि गोदोहासन हमें असहज लगता | लेकिन सहज और असहज हमारी आदतों की बातें हैं । पश्चिमी व्यक्ति को जमीन पर बैठना असहज है । पालथी मारकर बैठना तो ऐसी असहज बात है कि पश्चिमी व्यक्ति को सोखने में छः महीने भी लग सकते हैं । और छः महीने मालिश चले उसकी और वह बेचारा हाथ पैर भी सिकोड़े तभी वह ठीक से पालथी मार सकता है और फिर भी वह सहज नहीं होने वाला । क्योंकि पश्चिम में नीचे बैठता ही नहीं कोई । सब कुर्सी पर बैठते हैं । इसलिए नीचे बैठने की जो हमारी अत्यन्त' सहज बात मालूम पड़ती है वह जो लोग नहीं बैठते उनके लिए अत्यन्त असहज है । जो अभ्यास में हैं, वही सहज मालुम पड़ता है। जिसका अभ्यास नहीं है, वह असहज मालूम होने लगता है । हो सकता है महावीर निरन्तर पहाड़ में, जंगल में, वर्षा में, धूप में, ताप में रहे न कोई घर, न कोई द्वार, न बैठने के लिए कोई आसन, न कोई कुर्सी, न कोई गद्दो ।" कुछ भी नहीं है तो, यह बहुत कठिन नहीं है कि महावीर जंगल में रोज सहज उकडू ही बैठते रहे हों । यह बहुत कठिन नहीं है ।
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