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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१ ६२९ महावीर चुप रह गए । चुप रहना ही पड़ा होगा और कोई उपाय न रहा होगा। तीसरे व्यक्ति के सम्बन्ध में हो सकता है कि वह किसी अहंकार से न उठा हो। विनम्र सीधा-साधा आदमी रहा हो, सिर्फ आहूति देने उठा हो। एक व्यक्ति और मरे, इतनी देर भी महावीर जी जाएं, इसलिए उठा हो। महावीर ने रोका उसे। ___असल में कहानी सब नहीं कह पाती और हजारों साल से चलने के बाद रूखे तथ्य हाथ में रह जाते है जिनके पीछे की सब व्यवस्था साथ में नहीं रह जाती । क्या कारण होगा ? लेकिन अगर महावीर को हम समझ सकते हैं तो हमें बहुत कठिनाई नहीं मालूम पड़ती। जिन दो व्यक्तियों को बचाने के लिए वे कुछ नहीं कहें हैं, वे दो व्यक्ति ऐसे होंगे जिनको बचाने के लिए कुछ किया ही नहीं जा सकता होगा । वे दो व्यक्ति ऐसे होंगे जो महावीर के लिये खड़े ही नहीं हो रहे हैं, अपने लिए ही खड़े हो रहे हैं जो गोशालक को भी कुछ दिखा देना चाहते हैं कि हम भी कुछ हैं । तो महावीर के पास सिवाय दर्शक होने के और कोई उपाय नहीं रहा होगा। तीसरे व्यक्ति को उन्होंने रोका, तो इसका मतलब यह हो सकता है कि तीसरा व्यक्ति अहंकार से उठा हो, सिर्फ इसलिए कि जितनी देर तक मैं मरूंगा उतनी देर तक महावीर बचते हैं। वह इतनी विनम्रता से उठा हो कि महावीर को कुछ कहना पड़ा, रोकना पड़ा। ___ महावीर के चित्त में क्या हुआ यह समझना हमें कठिन हो जाता है। क्योकि हम ऊपर से तथ्य देखते है -कि दो को मर जाने दिया, एक को बचा लिया। हमें ख्याल में नहीं आता कि भीतर क्या कारण हो सकता है। भीतर से महावीर देखते खड़े होंगे तो सिवाय इसके कुछ भी नहीं दिखाई पड़ा होगा। उन दोनों के प्रति भी करुणा रही हो क्योंकि महावीर के लिए करुणा कोई शर्तबंद चीज नहीं है कि इस व्यक्ति के लिए रहेगी और उनके लिए नहीं रहेगी। लेकिन वे दोनों करुणा के पात्र रहे होंगे। महावीर यह भी जानते होंगे कि उन्हें रोकने से कोई मतलब नहीं है। क्योंकि कुछ लोग हैं जो रोकने से और बढ़ते हैं । न रोके जाएं तो शायद रुक जाएं । अंहकारी व्यक्ति ऐसा ही होता है। उसे रोको तो और तेज होता है। तो महावीर चुप रहे होंगे। एक घटना से में तुम्हें समझाऊँ। मैं जब पढ़ता था तो एक युवक मेरे साथ पढ़ता था। उसका एक बंगाली लड़की से प्रेम था। इतना दीवाना था, इतना पागल था कि वह दो साल
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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