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________________ ६१० महावीर : मेरी दृष्टि में यूनिवर्सिटी छोड़ कर कलकत्ता जाकर रहा, ताकि ठीक बंगाली हावभाव, बंगाली भाषा, बंगाली कपड़ा, बंगाली उठना-बैठना, सब बंगाली हो जाए । वह दो साल बाद बंगाली होकर लोटा और इतना बंगाली हो गया कि हिन्दी भी बोलता तो ऐसे बोलता जैसे बंगाली हिन्दी बोलता है। लेकिन ठीक वक्त पर उस लड़की ने इन्कार कर दिया। उस लड़की को मैंने पूछा कि क्या बात हो गई है ? इन्कारी का क्या कारण है ? तो उस लड़की ने कहा कि वह मेरे पीछे इतना पागल है और इतनी गुलाम वृत्ति से भरा हुआ है कि ऐसे गुलाम को पति बनाना मुझे पसन्द नहीं है। व्यक्ति ऐसा तो चाहिए जिसमें कुछ तो अपना हो, कुछ व्यक्तित्व तो हो? अब बड़ी मजेदार घटना घटी। वह बेचारा इसलिए झुका चला आ रहा था और सब स्वीकार करता चला जाता था कि लड़की उसे पसन्द करे। वह लड़को कहे रात तो रात, दिन तो दिन-ऐसा सब भाव ले लिया था लेकिन यही कारण उस लड़की का विवाह से इन्कार करने का था। उसने इन्कार कर दिया। एक रात मुझे खबर आई, नौ बजे होंगे कि उसने कमरे में अपने को बंद कर लिया है, ताला अन्दर से लगा लिया है और जो भी बाहर से कहे 'दरवाजा खोलो तो वह कहता है कि मेरी लाश निकलेगी, अब मुझसे बात मत करो। अब जिन्दा मेरे निकलने की कोई जरूरत नहीं है। यह बात फैल गई। भीड़ इकट्ठी हो गई। सब प्रियजन इकट्ठे हो गए। बूढ़ा बाप रोया। जितना रोया उतनी उसकी जिद्द बढ़ती गई । मुझे खबर आई, मैं गया । मैंने देखा वहां बाहर का सब इन्तजाम । मैंने कहा : यह सब मिल कर उसको मार डालेंगे क्योंकि उसका जोश बढ़ता चला जा रहा था। जितना वह समझाते थे कि अच्छी लड़की ला देंगे वह कहता : अच्छी लड़की ! मेरे लिए कोई अच्छी लड़की ही नहीं है दूसरी । अच्छे-बुरे का सवाल ही नहीं है। जितना वह समझाते कि ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे दरवाजा खोलो, वह बढ़ता चला जा रहा है, वह रुकता नहीं। मैंने उनसे कहा : अगर आप उसे बचाना चाहते हैं तो कृपा करके दरवाजे से हट जाएं, मुझे बात करने दें। मैं दरवाजे पर गया। मैंने उससे कहा : अरुण ! अगर मरना है तो इतना शोर-गुल मचाने की जरूरत नहीं। मरने वाले इतना शोर-गुल नहीं मचाते । यह तो जीने वालों के ढंग हैं। मरने वाले चुपचाप मर जाते हैं। तुम्हें तीन घंटे हो गए। क्या तीन चार साल लगेंगे मरने में ? तुम जल्दी मरो ताकि हम सब तुम्हें मरघट पर पहुंचा कर निश्चिन्त हो जाएं। उसने चुपचाप सुना, वह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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