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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में नहीं है कि उन शास्त्रों में कुछ भी न था। उन शास्त्रों में बहुत कुछ था। और महावीर जो कह रहे हैं वह यह है कि कोई खोज करेगा तो उसे शास्त्रों में भी मिल जाएगा, लेकिन महावीर उन शास्त्रों को बीच में लाना ही नहीं चाहते क्योंकि उन शास्त्रों को लाते ही शास्त्रीयता आती हैं, पांडित्य आता है, सारी दूकान आती है, सारी व्यवस्था आती है। वह ऐसे बोल रहे हैं जैसे कि कोई पहला आदमी जमीन पर खड़ा होकर बोल रहा हो जिसको किसी शास्त्र का कोई पता भी न हो। प्रश्न : गोशालक की कथा का क्या महत्त्व है ? महावीर ने प्रथम दो मुनियों को न बचा कर तीसरे को ही क्यों बचाया ? उत्तर : असल में कहानियों को समझना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि प्रताक हैं । और उन प्रतीकों में बड़ी बातें हैं जो खोली जाएं तो ख्याल में आ सकती है, न खोली जाएं तो बड़ी कठिनाइयां पैदा करती है। महावीर पर गोशालक ने तेजोलेश्या का प्रयोग किया है। वह एक ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का, एक योग का प्रयोग कर रहा है कि जिसमें कोई भी जल जाए और भस्म हो जाए । महावीर को बचाने के लिए एक साधु उठा, वह नष्ट हो गया । दूसरा उठा वह मर गया। महावीर देखते रहे। तीसरा उठा उसको महावीर ने रोक लिया। क्या दो के समय महावीर तटस्थ रहे और तीसरे के समय तटस्थता छोड़ दो ? यानी दो के समय उनमें कोई करुणा न आई। तीसरे के समय उन पर करुणा आ गई। अगर रोकना था तो पहली ही बार रोक देना था ताकि दो व्यक्ति न मर पाते। या नहीं रोकना था, तटस्थ ही रहना था तो तटस्थ हो रहना था । कोई मरता या जीता, इसकी चिन्ता न थी। इसमें बहुत बातें हो सकती हैं। पहली बात यह कि व्यक्ति किसलिए उठा, यह बड़ा महत्त्वपूर्ण है । जो व्यक्ति उठा पहले, जरूरी नहीं कि महावीर को बचाने उठा हो। सिर्फ दिखाने उठा हो कि मैं बचा सकता है, सिर्फ अहंकार से उठा हो और अहंकार को कोई भी नहीं बचा सकता, महावोर भी नहीं बचा सकते हैं । अहंकार तो जलेगा और नष्ट होगा। कहानी तो सीधी-सीधी होती है लेकिन पीछे हमें उतरने की जरूरत होती है । पहला आदमी किसलिए उठा ? क्या वह यह सोचता है कि क्या करेगा गोशालक मेरा ? मैं उससे ज्यादा प्रबल है; अभी उसे पछाड़ कर रख दूंगा। तो महावीर चुपचाप बैठे रहे होंगे। क्योंकि असल में वहां एक महावीर का साघु और दूसरा गोशालक-ऐसा नहीं रहा होगा। वहाँ दो गोशालक थे। दो अहंकार ये जो लड़ने को बड़े हो गए।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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