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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१ तो उसने सोचा कि छोड़ो, मेरी समझ में नहीं आएगा, जरा चल कर केमिस्ट को दिखा लूं। वह तो कम से कम गक्टरों की भाषा समझता है। वह बता देगा कि क्या लिखा है। उसने जाकर वह चिट्ठी एक केमिस्ट को दी। केमिस्ट ने चिट्ठी देखी : कहा रुकिए, भीतर गया। दो बोतलें निकाल कर ले आया। उसने कहा : माफ करिए ! बोतल का सवाल ही नहीं है । इसमें सिर्फ उसले क्षमा मांगी है कि मैं आज भोज में आ सकूँगा, कि नहीं। यह मेरी समझ में नहीं पा रहा है कि बात क्या है ? यह सारा का सारा खेल चलता है । तो पंडित ने एक तरकीब निकाली है बहुत पुराने दिन से। वह यह कि जनता की भाषा में सीधी-सीधी बात मत कहना कभी भी। उसको ऐसी शब्दावली में कहना कि वह रहस्य हो जाए, वह उसकी समझ से बाहर पड़ 'जाए और तब लोग तुमसे समझने आएंगे। इसलिए दुनिया में दो तरह के लोग हुए हैं। एक जो जीवन के रहस्य के लिए द्वार बनाना चाहते हैं ताकि प्रत्येक के लिए द्वार खुल जाए और एक जीवन में जो रहस्य नहीं भी है, उसको जबरदस्ती चारों तरफ से गोल-गोल करके उसे ऐसी स्थिति में खड़ा कर देना चाहते हैं कि वह किसी के लिए सीधा-सरल तथ्य न रह जाए। उमर खय्याम ने लिखा है कि जब मैं जवान था तो साधुओं के पास गया, ज्ञानियों के पास गया, परितों के पास गया। और उसी दरवाजे से बाहर आया जिस दरवाजे से भीतर गया था, क्योंकि मेरी कुछ पकड़ में ही नहीं पड़ा कि वहाँ क्या हो रहा है । वही का वही वापस लौटा जो मैं था क्योंकि मेरी कुछ पकड़ में नहीं पड़ा कि वहाँ क्या हो रहा है ? कोन शब्द वहाँ चल रहा है ? किन शब्दों को वे बातें कर रहे हैं ? किन लोगों की वे चर्चा कर रहे हैं ? जीवन से उनका कोई सम्पर्क नहीं है। महावीर की क्रान्तियों में एक क्रान्ति यह भी है कि उन्होंने धर्म के गृह रूप को जो छिपा हुआ था, उघड़ा हुआ कर दिया। इसलिए पंडित उन पर नाराज रहे हों तो कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि उन्होंने वह काम किया जैसे कोई डाक्टर सीधी हिन्दी में लिखने लगे कि अजवाइन का सत ले आओ तो दूसरे सारे डाक्टर उस पर नाराज हो जाएंगे कि तुम क्या कर रहें हो, तुम सब धंधा चौपट करवा दोगे। तो महावीर पर पंडितों की नाराजगी बड़ी अर्थपूर्ण है। इसलिए उन्होंने सीधी-सीधी जनभाषा का उपयोग किया है, शास्त्रों की भाषा को एकदम छोड़ दिया है जैसे कि शास्त्र हो ही नहीं। महावीर इस तरह बोल रहें है कि जैसे शास्त्र रहे ही नहीं। उनका यह उल्लेख भी नहीं करते। ऐसा
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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