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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में तब प्राण ऐसे आतुर हैं कि जाएगा क्योंकि अपात्र रह ६१६ जिसको मैं हूँ । लेकिन अब जब मुझे ज्ञान हो गया है, कीई अपात्र भी आ जाए तो उसको लेकर पात्र हो कैसे सकेगा ? तो अब मेरी फिक्र नहीं है कि तुम किसको लाते हो । महावीर ने इस सम्बन्ध में बड़ी भारी क्रान्ति की । ठेठ बाजार में पहुँचा दी सारी बात । इससे क्रोध भी बहुत हुआ । रहस्य की बातें तो हैं ये । पंडित का धंधा चलता था कि बातें गुप्त थीं । आप जानते हैं कि जब डाक्टर प्रिसक्रिप्शन लिखता है दवाई का तो लैटिन और ग्रीक भाषा का उपयोग करता है, सीधीसादी अंग्रेजी का भी उपयोग नहीं करता, हिन्दी की तो बात दूर है। लैटिन और ग्रीक शब्दों का उपयोग दवाइयों के नाम के लिए किया जाता है। कारण कि अगर आपको उसका ठीक-ठीक नाम, पता चल जाए तो आप उसके लिए पांच रुपये देने को राजी नहीं होंगे। आपको वह दवा बाजार में दो पैसे में मिल सकती है । रहस्य यह है कि जो उसने लिखा है, वह आपकी पकड़ के बाहर है। हो सकता है उसने लिखा हो अजवाइन । लेकिन लिखा है लैटिन में । अजवाइन का सत तो हम घर में ही निकाल लेंगे। इसके लिए लिए हम पाँच या दस रुपए क्यों देंगे बाजार में ? लेकिन अजवाइन का सत लिखा है ग्रीक में । आपको पता चलता नहीं कि क्या मतलब है ? आप दो पैसे की चीज को पांच या दस रुपए में खरीद कर लाते हैं । पूरा मेडिकल धन्धा बेईमानी का है। क्योंकि अगर सीधी-सीधी बातें लिख दी जाएँ तो सब दवाई की दूकानें खत्म होने के करीब पहुँच जाएँ । क्योंकि दवाइयां बहुत सस्ती हैं और उन्हीं चीजों से बनी है जो बाजार में आम मिल रही हैं लेकिन एक तरकीब उपयोग की जा रही है निरन्तर कि नाम अंग्रेजी में भी नहीं हैं, लेटिन और ग्रीक में हैं । अंग्रेजी पढ़ा लिखा आदमी भी नहीं समझ सकता। डाक्टर जिस ढंग से लिखते हैं, वह ढंग भी कारण है उसमें । यानी वह लैटिन और ग्रीक भी आप ठीक से नहीं समझ सकते कि वह क्या लिखा हुआ है। वह भी सिर्फ दूकानदार ही समझता है जो बेचता है दवा । वह भी शायद नहीं समझता है। बड़े अज्ञान में काम चलता है । मैंने सुना है कि एक आदमी को किसी डाक्टर की चिट्ठी आई थी। किसी डाक्टर ने चिट्ठी लिखी थी। घर पर उसने भोज बुलाया हुआ था और या तो उसने क्षमा माँगी थी लेकिन निरन्तर आदत के से हिला दिया था, जैसा वह प्रिस्क्रिप्शन लिखता था। पढ़ा। उसे समझ में नहीं आया कि वह जा रहा है डाक्टर नहीं आ सकता बस उसने उसी ढंग कि उस आदमी ने बहुत नहीं आ रहा है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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