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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२१ १२५ मुश्किल था। अधिकारी की शर्ते ऐसी थीं। यानी ऐसा ही है कि जैसे कोई डाक्टर किसी से कहे कि हम बीमार को दवा नहीं देते, हम तो स्वस्थ आदमी को दवा देंगे। स्वस्थ आदमी ले आओ। अब मेरी अपनी समझ है कि स्वस्थ आदमी डाक्टर के पास जाएगा ही नहीं । अधिकारी जो हो गया है, वह किसी से लेने क्यों जाएगा ? क्योंकि जिस दिन अधिकार उपलब्ध होता है उसी दिन अपनी उपलब्धि हो जाती है। जिस दिन पात्रता पूरी होती है । उसी दिन परमात्मा खुद ही उतर आता है। मनषिकारी ही खोजता है। अधिकारी खोजेगा ही क्यों ? अधिकारी का मतलब है कि जिसका अधिकार हो गया। अब तो ज्ञान उसे मिलेगा ही। वह सीधी मांग कर सकता है इस बात की। तो अधिकारी किसी के पास नहीं जाता है। तो लोग थक गये थे। फिर वह बूढ़ा हो गया, बहुत बूढ़ा । फिर एक दिन उसने एक आदमी को जो रास्ते से गुजर रहा था, कहा : सुनो ! ज्यादा नहीं, मैं तीन दिन में मर जाऊँगा। गांव में जितने लोगों को खबर हो सके, पहुंचा दो। जिसको भी ज्ञान चाहिए वह एकदम चला आए। उस आदमी ने कहा लेकिन मेरा गांव बहुत छोटा है, अधिकारी वहां कोई भी नहीं। फकीर ने कहा, अब अधिकारी, गैर-अधिकारी का सवाल नहीं रहा। क्योंकि तीन दिन बाद मैं मर जाने को हूँ। जाओ, जो भी आए, उसको ले आओ। वह आदमी गांव में गया, और डोंडी पीट दी । उस बूढ़े से तो लोगों का कभी कुछ सम्बन्ध नहीं था। फिर भी किसी को दूकान पर आज काम नहीं था तो उसने कहा कि चलो, मैं भी चल सकता है। किसी की पत्नी मर गई थी तो उसने कहा कि चलो, हम भी चलते हैं। किसी को कुछ और हो गया था। कोई दस बारह लोग मिल गए और वे पहाड़ पर चढ़कर वहां जा पहुंचे। लेकिन वह जो ले जा रहा था मन में बड़ा चिन्तित था कि इन सबको वह फौरन ही बाहर निकाल देगा। इनमें कोई भी अधिकारी नहीं है, कोई भी पात्र नहीं है। उसने डरते. डरते जाकर कहा कि दस-बारह लोग आए हैं लेकिन मुझे शक है कि कोई मापके अधिकार के नियम में उतरेगा। फकोर ने कहा : वह बात ही मत करो। एक-एक को भीतर लाओ। तो उसने पूछा : आपने अब अधिकार की बात छोड़ दो। तो फकीर ने कहा कि सच बात यह है कि जब तक मेरे पास कुछ नहीं था, तब तक मैं इस भांति अपने को बचाता था कि अनधिकारी को कैसे हूँ? मेरे पास ही नहीं था देने को कुछ । लेकिन यह मानने की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि मेरे पास कुछ नहीं है। तो मैंने यह तरकीब निकाली थी कि पात्र कहाँ है
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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