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________________ ६२४ महावीर : मेरी दृष्टि में को सौन्दर्य दिखाई पड़ेगा, अधिकारी को सुगंध देंगे। सूरज नहीं कहता कि अधिकारी को प्रकाश मिलेगा। स्वांस नहीं कहती कि अधिकारी के हृदय में पलूंगा? खून नहीं कहता कि अधिकारी के भीतर बहूँगा। जगत् अधिकारी की मांग नहीं करता। सिर्फ ज्ञान के सम्बन्ध में पंडित कहता है कि अधिकारी पहले पक्का हो जाए । क्यों ? सारा जीवन अनधिकारी को मिला हुआ है, सिर्फ ज्ञान भर अधिकारी को मिलेगा। तो भगवान् बड़ा नासमझ है। अनधिकारियों को जीवन देता है और पंडित बड़ा समझदार है। और अधिकारी को पक्का कर ले तब ज्ञान देगा। अधिकारी की बात ही अत्यन्त व्यापारिक और तरकीब की बात है। तब वह उसको देना चाह रहा है, जिससे उसे कुछ मिलता हो। वह मिलना किसी भी तल पर हो सकता है । इज्जत, आदर, श्रद्धा, धन, मान-सम्मान, किसी भी तरकीब से उसको देगा जिससे कुछ मिलने का पक्का होगा । और उसको देगा, जो उसका अपना है। सबको नहीं देगा खुले हाथ। अपरिचित, अनजान, अजनबी ले जाए, ऐसा नहीं देगा। इसी वजह से ज्ञान को गुरु-शिष्य की परम्परा में बांधने की तरकीब है। उस तरकीब में कभी भी ज्ञान विस्तीर्ण नहीं हो सका। ___ एडीसन को अगर पता चल गया कि बिजली कैसे बनता है तो वह ज्ञान सबके लिए हो गया। और एडीशन ने नहीं पूछा कि अधिकारी कोन है जिसके घर में बिजली जले । वह सबके लिए खुली किताब हो गई, जो भी उपयोग में लाना चाहें, ले आए। विज्ञान इसीलिए जीता है धर्म के खिलाफ कि धर्म था थोड़े से लोगों के हाथ में, और विज्ञान ने सत्य दे दिया सबके हाथ में। विज्ञान की जीत का कारण यह है कि विज्ञान ने पहली दफा ज्ञान को सार्वलौकिक जना विया । और धार्मिक लोगों ने ज्ञान को बना लिया बिल्कुल ही सोमित दायरे में रहने वाला यानी सोच-विचार कर किसको देना, किसको नहीं देना। और कई बार ऐसा होता है कि जानने वाला आदमी पात्र को, अधिकारी को खोजते-खोजते ही मर जाता है और उसे अधिकारी नहीं मिल पाता है । ___मैंने सुना है कि एक फकीर हिमालय की तराई पर रहता था और नब्बे वर्ष का हो गया था। कई बार लोगों ने आकर कहा कि हमें ज्ञान दो, पर उसने कहा कि अधिकारी के सिवाय शान तो किसी को नहीं मिल सकता। अधिकारी लामो। शर्ते उसकी ऐसी थीं कि वैसा आदमी पूरी पृथ्वी पर खोजना
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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