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________________ प्रश्नोतर - प्रवचन- २१ ६२३ है। क्योंकि महावीर की दृष्टि में जो मरने वाला है, वह मरेगा ही । जो नहीं मरने वाला है वह नहीं मरता है । और जो मरने वाले को बचाने की कोशिश करते हैं वे बड़ी भ्रान्ति में पड़ जाते हैं । वह अक्सर राख को अंगार समझ लेते हैं । धर्म है, वह अंगार है । तीन चार सौ वर्षों तक, शास्त्र से जो धर्म है, वह राख है। जीवन में जो तो जीते जी उन्होंने शास्त्र निर्मित नहीं होने दिया। जब तक कि लोगों को ख्याल रहा होगा उस आदमी का, उसके निषेध का, उसके इन्कार का, तब तक उन्होंने प्रलोभन को रोका होगा लेकिन जब वह स्मृति शिथिल पड़ गई होगी, धीरे-धीरे विस्मरण के गर्त में चली गई होगी, तब उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यही रह गया होगा कि हम कैसे सुरक्षित कर लें जो भी उन्होंने कहा । यह ध्यान रखने की बात है कि आज तक जगत् में जो भी महत्वपूर्ण है, जो भी सत्य है, जो भी सुन्दर है, वह लिखा नहीं गया है, वह कहा हो गया है । कहने में एक बड़ी जीवन्न बात है, लिखने में वह मुर्दा हो जाती है । क्योंकि जब हम कहते हैं तो कोई जीवन्त सामने होता है जिससे कहते हैं । अकेले में तो कह नहीं सकते, लिखने वाले के समक्ष कोई भी मौजूद नहीं है, सिर्फ लिखने वाला मोजूद है। बोलने वाले के समक्ष बोलने वाले से भी ज्यादा सुनने वाला मौजूद है । और एक जीवन्त सम्पर्क है । इस जीवन्त सम्पर्क के कारण न तो उन्होंने शास्त्रों की भाषा उपयोग को, न शास्त्रीयता का उपयोग किया; न अपने पीछे शास्त्र की रेखा बनने दी । और लोकमानस का, सामान्य जन का बहुत पुराना संघर्ष है यह जोकि अभी पूर्ण नहीं हो पाया है । ऐसी धारणा रही है कि धर्म थोड़े से चुने हुए लोगों की बात है । ओर सत्य थोड़े से लोगों की समझ को बात है । मुझसे लोग आकर कहते हैं कि आप ऐसी बातें लोगों से मत कहिए। ये बातें तो थोड़े. लोगों के लिए है । सामान्य आदमी को मत कहिए । सामान्य आदमी इनसे भटक जाएगा । अब यह बड़े मजे की बात है कि सामान्य आदमी को सत्य भटकता है और असत्य मार्ग पर लाता है । और मेरी दृष्टि यह है कि वह बेचारा सामान्य हो इसीलिए है कि उसे सत्य की कोई खबर नहीं मिलती । प्रश्न : क्या अनधिकारी को ज्ञान नहीं मिलना चाहिए ? उत्तर : कोई भी अनधिकारी नहीं है ज्ञान की दृष्टि से । कौन निर्णायक है कि कौन अधिकारी है । निर्णय कौन करेगा ? फूल नहीं कहता कि अधिकारी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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