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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २ ४५ कृष्ण के अगर हजार · इसीलिए तो गीता की हजार टोकाएं हो सकती हैं। अगर गीता से समझ निकलती हो तो उसकी हजार टीकाएं कैसे हो सकती हैं ? मतलब रहे होंगे तो कृष्ण का दिमाग खराब रहा होग। कृष्ण का तो एक ही मृतलब रहा होगा । हजार टीकाएं हो सकती हैं, लाख टीकाएं हो सकती हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अपनी खोज, अपनी समझ उसमें खोज लेगा । और शब्द इतना बेजान है कि तुम उसे मार ठीक कर जहां लाना चाहो, आ जाता है। वह कुछ कर ही नहीं सकता । तुमने उसकी गर्दन में डाली फांस और खींचा तो तुम जहां लाना चाहते हो ले आते हो। उसी गोता से शंकर निकाल लेंगे "कि जगत् सब माया है, कर्ममुक्त हो जाना ही संदेश है ।" उसी गीता से तिलक निकाल लेंगे कि "कर्म ही जीवन है और जीवन सत्य है ।" उसी गीता से दोनों निकाल रहे हैं । उसी गीता से अर्जुन निकालता है कि युद्ध में जीत जाओ । अर्जुन सुनने वाला है । श्रोता है पहला वह । पहली टीका उसी की है समझ । पहला कमेन्टेटर वही है । सुना है उसने । सुन ही तो नहीं लिया, जो सुना है उसको समझा है, गुना है, अपना मतलब निकाला है । अर्जुन मतलब निकाल लेता है युद्ध में जीत जाओ और महाभारत का युद्ध हो जाता है । और उसी गीता को गांधी अपनी माता समझते हैं और अहिंसा का संदेश निकालते हैं । अब यह बहुत मजेदार मामला है - अर्जुन हिंसा में उतर जाता है और गांधी भर हाथ में रखकर अहिंसा में चले जाते हैं । तो गीता बेचारी कुछ है या कि गीता में हम कुछ डालते हैं । शास्त्र अपनी बुद्धि को बाहर निकाल कर पढ़ने का उपाय है । भीतर पढ़ना जरा मुश्किल है। इसलिए प्रोजेक्ट कर लेते हैं पर्दे पर । शास्त्र पर्दा बन जाता है, उसमें अपने भीतर को बाहर लिख लेते हैं । फिर हमें दोहरी तृप्ति मिल जाती है । एक तो हमें अपने पर विश्वास नहीं है । जब हम गीता में पढ़ लेते हैं अपने को तो हम मजबूत हो जाते हैं कि ठीक है; क्योंकि कृष्ण भी यही कहते हैं । यानी हमें कोई भटक जाने का डर नहीं । महावीर भी यही कहते हैं, बुद्ध भी यही कहते हैं। इस भूल में पड़ना भी मत कि अनुयायी ने कभी भी बुद्ध का या महावीर का साथ दिया है । अनुयायी ने बुद्ध और महावीर का साथ लिया है। दिखता है न कि महावीर के पीछे चल रहा है, महावीर का अनुयायी है। सचाई उल्टी है महावीर का अनुयायी महावीर को अपने पीछे चला रहा है और चलाकर आश्वस्त है कि हम कोई गलती में वो हो नहीं सकते क्योंकि महावीर साथ हैं । तो वह हर चीज को निकाल लेता है, हर चीज के उपाय निकाल लेता है । उसको जिन्दगी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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