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________________ ૪ महावीर : मेरी दृष्टि में उसको पकड़ेंगे, और शास्त्र बनाएंगे और उससे छुटकारा दिलाना होगा। यानी जो व्यक्ति भी हमारे लिए मुक्तिदायी सिद्ध हो सकते हैं उन्हें हम बंधन बना लेते है और जब उन्हें बंधन ना लेते हैं तो उनसे भी मुक्ति दिलानी पड़ती है । और जो हमें फिर मुक्ति दिलाते है, हम उसे फिर बंधन बना लेते हैं । · । लम्बी कथा है यह कि मुक्तिदायी विचार भी कैसे बंधन बन जाते हैं, कि मुक्तिदायी व्यक्ति भी कैसे बंधन बन जाते हैं; फिर कैसे उनसे छुड़ाना पड़ता है और इसलिए कोई भी विचार सदा रहने वाला नहीं हो सकता और इसलिए किसी भी विचार की एक सीमा है प्रभाव की । जीवन्त उस प्रभाव क्षेत्र में जितने लोग आ जाते हैं और जीवन्त प्रयोग में लग जाते हैं, में तो निकल जाते हैं। पीछे फिर केवल राख रह जाती है । इसलिए सब तीर्थंकरों, सब अवतारों, उन सब निष्ठावान लोगों के आस-पास राख का संग्रह हो जाता है । और वह जो राख का संग्रह है वह सम्प्रदाय बन जाता है। और फिर वे राख के संग्रह । एक दूसरे से लड़ते हैं, कि कोई फिर खड़ा हो झगड़ते हैं, उपद्रव करते हैं और सारी राख को मिटा दे । और तब जरूरत होती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं होता कि वह राख नहीं बन जाएगा । वह बनेगा । जो भी अंगारा जलेगा, वह बुझेगा । जो विचार एक दिन जीवन्त होगा एक दिन मृत हो जाएगा । जब महावीर ही मिट जाते हैं, बुद्ध ही मिट जाते हैं तो जो कहा हुआ है, वह भी मिट जाएगा । इस जगत् में जिसमें हम जी रहे हैं कुछ भी शाश्वत नहीं है । न कोई वाणी, न कोई विचार, न कोई व्यक्ति, कुछ भी शाश्वत नहीं है । यहां सभी मिट जाएगा । मिट जाने के बाद भी पकड़ने वाला आग्रह उसको पकड़े रखेगा और तब किसी को चेतना पड़ेगा कि लहर चली गई है, हाथ तुम्हारा खाली है । तुम कुछ भी नहीं पकड़े हो । अब दूसरी लहर आ गई है, तुम पुरानी के चक्कर में पड़े हो । इसे पकड़े रहे तो नई लहर से भी चूक जाओगे । पुरानी लहर जा चुकी । यह जो हमें ख्याल में आ जाए, तो मैं शास्त्र की निन्दा नहीं कर रहा हूं । वह जो वस्तुस्थिति है, वह कह रहा हूं । और वह जो तुम कहते हो ठीक है । मेरी बहुत सी बातें शास्त्र में मिल जायेंगी । इसलिए नहीं कि वह शास्त्र में हैं, इसलिए कि तुम मेरी बातों को समझ लोगे । अगर मेरी बातें तुम्हें समझ में पड़ गईं तो तुम्हें शास्त्र में मिल जाएंगी क्योंकि शास्त्र में तुम्हें वही मिल जाएगा जो तुम्हारी समझ है क्योंकि हम शास्त्र में अपनी समझ डालते है। आम तौर पर हम यह समझते हैं कि शास्त्र से समझ निकलती है । निकलता नहीं। हम शास्त्र में अपनी समझ डालते हैं ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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