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________________ ६१८ महावीर : मेरी दृष्टि में साधारण जन कम से कम समझ पाए, वह अनिवार्य-रूपेण जनता का नेता और गुरु हो सकता है । इसलिए इस देश में दो परम्पराएं चल पड़ों। एक परम्परा थी जो संस्कृत में ही लिखती और सोचती थी। वह बहुत थोड़े से लोगों की थी। एक प्रतिशत लोगों का भी उसमें हाथ न था। बाकी सब दर्शक थे। ज्ञान का जो आन्दोलन चलता था वह बहुत थोड़े से अभिजातवर्गीय लोगों का था। जनता अनिवार्य रूप से अज्ञान में रहने को बाध्य थी। महावीर और बुद्ध-दोनों ने जन-भाषाओं का उपयोग किया। जिस भाषा में लोग बोलते थे उसी भाषा में वे बोले । और शायद यह भी एक कारण है कि हिन्दू ग्रन्थों में महावीर के नाम का कोई उल्लेख नहीं है । न उल्लेख होने का कारण है क्योंकि संस्कृत में न उन्होंने कोई शास्त्रार्थ किए, न उन्होंने कोई दर्शन विकसित किया । न उनके ऊपर, उनके सम्बन्ध में, कोई शास्त्र निमित हआ। आज भी हिन्दुस्तान में अंग्रेजी दो प्रतिशत लोगों की अभिजात भाषा है । हो सकता है कि मैं हिन्दी में ही बोलता चला जाऊँ तो दो प्रतिशत लोगों को यह पता ही न चले कि मैं भी कुछ बोल रहा हूँ। वे अंग्रेजी में पढ़ने और सुनने के आदी हैं । महावीर चूंकि अत्यन्त जन-भाषा में बोले, इन पंडितों का जो वर्ग था, उसने उनको बाहर ही रखा। जनसाधारण ग्राम्य ही थे, उनको उसने भीतर नहीं लिया । इसलिए किसी भी हिन्दू ग्रन्थ में महावीर का उल्लेख नहीं है। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि महावीर जैसी प्रतिभा का व्यक्ति पैदा हो और देश की सबसे बड़ी परम्परा में, उसके शास्त्र में, उस समय के लिपिबद्ध ग्रन्थों में उसका कोई उल्लेख भी न हो, विरोध में भी नहीं। अगर कोई हिन्दू प्रत्यों को पढ़े तो शक होगा कि महावीर जैसा व्यक्ति कभी हुआ भी या नहीं। अकल्पनीय मालूम पड़ता है कि ऐसे व्यक्ति का नाम भी नहीं है। ____ मैं उसके बुनियादी कारणों में एक कारण यह मानता हूँ कि महावीर उस भाषा में बोल रहे है जो जनता को है । पंडितों से शायद उनका बहुत कम सम्पर्क बन पाया। हो सकता है कि हजारों पंडित अपरिचित ही रहे हों कि यह आदमी क्या बोलता है। क्योंकि पंडितों का अपना एक अभिजात भाव है। वे साधारण जन नहीं है। वे साधारण जन की भाषा में न बोलते हैं न सोचते हैं । वे असाधारण जन हैं। वे चुने हुए लोग हैं। उन चुने हुए लोगों की दुनिया का सब कुछ न्यारा है । साधारण जन से कुछ लेना-देना नहीं। साधारण जन तो भवन के बाहर हैं, मन्दिर के बाहर हैं। कभी-कभी दया करके, कृपा करके साधारण पन को भी वे कुछ बता देते हैं । लेकिन गहरी और गम्भीर चर्चा
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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