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________________ प्रश्न : महावीर प्राकृत भाषा में क्यों बोले ? संस्कृत में क्यों नहीं ? उत्तर : यह प्रश्न सच में गहरा है । संस्कृत कभी भी लोकभाषा नहीं थी । सदा से पंडित की भाषा रही - दार्शनिक की, विचार की। प्राकृत लोकभाषा थी - साधारण जन की, अशिक्षित की, ग्रामीण की ।। शब्द भी बड़े अद्भुत हैं । प्रकृति का मतलब है स्वाभाविकः संस्कृत का मतलब है परिष्कृत । प्रकृति से ही जो परिष्कृत रूप हुए थे, वे संस्कृत बने । प्राकृत मूलभाषा है। संस्कृत उसका परिष्कार है । इसलिए संस्कृत शब्द शुरू हुआ उस भाषा के लिए जो परिष्कृत थी । संस्कृत धीरे-धीरे इतनी परिष्कृत होती चली गई कि वह अत्यन्त थोड़े से लोगों की भाषा रह गई । लेकिन पंडित, पुरोहित के यह हित में है कि जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान् है वह सब ऐसी भाषा में हो जिसे साधारण जन न समझ सके । साधारण जन जिस भाषा को समझता हो, अगर वह उस भाषा में होगा तो पंडित पुरोहित और गुरु बहुत गहरे अर्थों में अनावश्यक हो जाएंगे । उनकी आवश्यकता शास्त्र का अर्थ करने में । साधारण जन को भाषा में हो अगर सारी बातें होंगी तो पंडित का क्या प्रयोजन ? वह किस बात का अर्थ करे ? पुराने जमाने में विवाद को हम कहते थे शास्त्रार्थ । शास्त्रार्थ का मतलब है - शास्त्र का अर्थ | दो पंडित लड़ते हैं । विवाद यह नहीं है कि सत्य क्या है । विवाद यह है कि शास्त्र का अर्थ क्या है ? पुरामा सारा विवाद सत्य के लिए नहीं है, शास्त्र के अर्थ के लिए है कि व्याख्या क्या है शास्त्र की ? इतनी दुरूह और इतनी परिष्कृत शब्दावली विकसित को गई जो साधारण जन की हैसियत के बाहर है और जिस बात को
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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