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प्रश्नोतर-प्रवचन-२१
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तो वहां मन्दिर के भीतर चल रही है जहाँ साधारण जन को प्रवेश निषिद्ध है। ___ महावीर और बुद्ध को बड़ी से बड़ी क्रान्तियों में एक क्रान्ति यह भी है कि उन्होंने धर्म को ठेठ बाजार में लाकर खड़ा कर दिया, ठेठ गांव के बीच । वह किसी भवन के भीतर बन्द चुने हुए लोगों की बात न रही, वह सबकी-जो सुन सकता है, जो समझ सकता है, बात हो गई। ___ इसलिए उन्होंने संस्कृत का उपयोग नहीं किया। और भी कई कारण है। असल में प्रत्येक भाषा जो किसी परम्परा से सम्बद्ध हो जाती है, उसके अपने सम्बन्ध हो जाते हैं । उसका प्रत्येक शब्द एक निहित अर्थ ले लेता है। और उसके किसी भी शब्द का प्रयोग खतरे से खाली नहीं हैं। क्योंकि जब उस शब्द का प्रयोग करते हैं तो उस शब्द के साथ जुड़ी हुई परम्परा का सारा भाव पीछे खड़ा हो जाता है। इस अर्थ में जनता की जो सीधी-सादी भाषा है, वह अद्भुत है । वह काम करने की, व्यवहार करने की, जीवन की भाषा है । उसमें बहुत शब्द ऐसे हैं जिनको नए अर्थ दिए जा सकते हैं । और महावीर को जरूरी था कि वह जैसा सोच रहे थे, वैसे अर्थ के लिए नई शब्दावली लें। कठिन या कि वह संस्कृत शब्दावली को उपयोग में ला सकें। क्योंकि संस्कृत सैकड़ों वर्षों से, हजारों वर्षों से, परम्पराबद्ध विचार की एक विशेष दिशा में काम कर रही थी। उसके प्रत्येक शब्द का अर्थ निश्चित हो गया था। तो उचित यह था कि ठीक अनपढ़ जनता की भाषा को सीधा उठा लिया जाए। उसे नए अर्थ, नए तराश, नए कोने दिए जा सकते थे। तो उन्होंने सीधी जनता की भाषा उठा ली और उस जनता की भाषा में अद्भुत चमत्कारपूर्ण व्यवस्था दी। __यह इस बात का भी प्रमाण हो सकता है कि महावीर का मन, शास्त्रीय नहीं है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका मन शास्त्रीय होता है, जो सोचते हैं शास्त्र में, समझते हैं शास्त्र में, जीते हैं शास्त्र में। शास्त्र के बाहर उन्हें कोई जीवन लगता ही नहीं। अगर उनकी बातचीत सुनने जाएंगे तो पता चलेगा कि शास्त्र के बाहर कहीं कुछ है ही नहीं, और शास्त्र बड़ी संकीर्ण चीज है, जिन्दगी बड़ी विराट् चीज है। उनके प्रश्न भी उठते हैं तो जिन्दगी से नहीं आते, किताब से आते हैं। वे अगर कुछ पूछेगे भी तो वह इसलिए कि उन्होंने किताबें पढ़ी हैं। उनकी सीधी जिन्दगी से कोई प्रश्न नहीं उठते । और इस लिहाज से यह बड़ी हैरानी की बात है कि कभी ग्रामीण से ग्रामीण व्यक्ति भी