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________________ ५९८ महावीर : मेरी दृष्टि में वह भी एकान्त है। क्योंकि सत्य के अनेक पहलू हैं और सत्य इतनी बड़ी बात है कि ठीक एक सत्य से विपरीत सत्य भी सही हो सकता है। इसलिए महावीर कहते हैं कि मैं अनेकान्तवादी हूँ यानी सब एकान्तों को स्वीकार करता है। अगर एक आदमी आकर महावीर को पूछता है : आत्मा शाश्वत है कि अशाश्वत ? तो महावीर कहेंगे शाश्वत भी, अशाश्वत भी। वह आदमी कहेगा कि ये दोनों कैसे हो सकते हैं। तो महावीर कहेंगे : किस कोने में खड़े होकर तुम देखते हो। अगर तुम शरीर को ही आत्मा समझते हो जैसा कि नास्तिक समझता है तो अशाश्वत है। अगर तुम आत्मा को शरीर से भिन्न समझते हो जैसा आत्मवादी समझता है तो आत्मा शाश्वत है और मैं कोई एक वक्तव्य न दूँगा। क्योंकि एक वक्तव्य एकान्त होगा। अनेकान्त का अर्थ है जीवन के सब पहलुओं को एक साथ स्वीकृति । हम सब कहानी जानते हैं कि एक हाथी के पास पांच अन्धे खड़े हो गए । और जिसने हाथी का पैर छुआ उसने कहा : हाथी खम्भे की तरह है, केले के वृक्ष की तरह है। जिसने कान छुए उसने कहा कि हाथी गेहूँ साफ करने वाले सूप की तरह है और उन सबने अपने-अपने दावे किए हैं क्योंकि हाथी न तो खम्भे की तरह है, न सूप की तरह है। और हाथी में कुछ है जो सूप की तरह है और कुछ है जो खम्भे को तरह है। महावीर कहते हैं कि अगर कोई आदमी दिया जलाकर वहां पहुंच जाए और उन पांच अन्धों को विवाद करते देखे तो वह आदमी जिसने दिया जला लिया है वह क्या करे, वह किसका साथ दे । वह प्रत्येक अन्धे से कहेगा कि तुम ठीक कहते हो लेकिन पूरा ठीक नहीं कहते हो। और वह प्रत्येक अन्धे से कहेगा कि तुम जिसे विरोधो समझ रहे हो वह तुम्हारा विरोधी नहीं है । वह भी हाथो के एक अंग के बाबत बात कर रहा है। पूरा हाथी-तुम जो कहते हो उन सब का जोड़ और उससे ज्यादा भी है। अगर हर पांचों अन्धों के अनुभवों को भी हम जोड़ लें तो भी असली हाथी नहीं बनेगा। असली हाथी उन सबके अनुभव से ज्यादा भी है क्योंकि कुछ तो ऐसा है जो कि हाथी ही अनुभव कर सकता है कि वह क्या है, जिसको न अन्धा अनुभव कर सकता है, न दिया जलाने वाला अनुभव कर सकता है। यानी पुरो तरह देख लो हाथी को तो वह भी हाथी नहीं है। हाथो का एक अपना अनुभव है । और हो सकता है कि हाथी का वह अनुभव अगर हाथी कभी कह सके तो न पांच अन्धों से मेल खाए और न दिए जलाने वाले से मेल खाए ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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