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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१९ ५९७ को पीछे हटा देता है और कुछ भी नहीं करता। लेकिन अगर हमें पूरी जिन्दगी देखनी हो तो हमें ख्याल रखना होगा कि यह बात सच है कि किसी का सहारा कभी मत लेना क्योंकि सहारा भटकाने वाला होगा। और यह बात तो फिर उसके साथ ही जुड़ गई कि मैं आपको सहारा दे रहा हूँ यह बात कह कर । अब आप क्या करेंगे? - सूफिस्ट एक उदाहरण देते थे कि सिसली से एक आदमी आया और उसने ऐयन्स में आकर कहा कि सिसलो में सब लोग झूठ बोलने वाले हैं। तो एक आदमी ने खड़े होकर उससे पूछा कि तुम कहाँ के रहने वाले हो। उसने कहा कि मैं सिसली का रहने वाला हूँ। तो उसने कहा : हम बड़ी मुश्किल में पड़ गए । तुम कहते हो सिसली में सब झूठ बालने वाले हैं। तुम सिसली के रहने वाले हो । तुम एक झूठ बोलने वाले आदमी हो। अब हम तुम्हारी बात को क्या कहें ? अगर हम यह बात मान लें कि सिसली में कम से कम एक आदमो है जो सच बोलता है तो भी तुम्हारी बात गलत हो जाती हैं कि सिसली में सब झूठ बोलने वाले लोग हैं । अगर हम तुम्हें झूठ मानते हैं तो मुश्किल हो जाती है। तो एक आदमी ने खड़े होकर कहा कि अब हम करें क्या ? अब उस आदमी को शायद कुछ भी नहीं सूझा कि अब वह क्या करे, क्या कहे ? जिन्दगी इतनी जटिल है कि दोनों बातें सही हो सकती हैं । सिसली में सब झूठ बोलने वाले लोग भी हो सकते हैं। इस आदमी का वक्तव्य भी सही हो सकता है । क्योंकि सब लोग सब समय झूठ न बोलते हों। बस मौके पर सिसलो का यह आदमी झूठ न बोल रहा हो। जिन्दगी इतनी जटिल है कि हम जब कभी उसे एक कोने से पकड़ कर आग्रह करने लगते हैं तभी हमारा आग्रह भूठा हो जाता है। परसों कोई पूछ रहा था अनेकान्त के लिए। तो इस सन्दर्भ में यह समझ लेना जरूरी है। महावीर कहते हैं कि जीवन के एक पहलू को पकड़कर कोई दावा करे तो यह है एकान्त । एकान्तवादी वह है जिसने जीवन का एक ही कोना देखा है, एक ही कोने को देखकर पूरी जिन्दगी के निष्कर्ष निकाले हैं । इसने सब कोने अभी नहीं देखे हैं। और अगर यह सब कोने देख लेगा तो यह दावा छोड़ देगा। क्योंकि इसे ऐसे कोने मिलेंगे जो ठीक इससे विपरीत हैं और इतने ही सही हैं जितना यह सही है । और तब यह दावा नहीं करेगा । महावीर बड़े अद्भुत व्यक्ति है । वह कहते हैं कि सत्य का मापह भी गलत है क्योंकि
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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