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________________ ४२ . . महावीर : मेरी दृष्टि में थो; यह किताव उसको मुक्त करने की तैयारी में थी। पूरा इसका भाव यही था। तो मेरी सारी बातें ऐसी हैं कि अगर उनको काट पीट न किया जाए तो शास्त्र बनाना मुश्किल है। ज्यादा से ज्यादा किताब बन सकती है। लेकिन शास्त्र बनाए जा सकते हैं । शास्त्र बनाना कठिन नहीं है। क्योंकि शास्त्र कोई. बोलता है कुछ, इससे नहीं बनते। कोई पकड़ता है, इससे बनते हैं। यानी शास्त्र महावीर के बोलने से नहीं बनता गया। गणघरों के पकड़ने से बना है। और पकड़ने वाले हैं तो पकड़ने वाला पकड़ ही न पाए, इसका सारा उपाय हमारी वाणी में होना चाहिए। यानी वह वारणी ऐसी कांटों वाली हो, ऐसी अंगारों से भरी हो कि पकड़ना मुश्किल हो जाए। लेकिन अंगारे भी बुझ जाते हैं, एक न एक दिन राख हो जाते हैं और पकड़ने वाले भी उन्हें मुट्ठी में पकड़ लेते हैं। इसका मतलब सिर्फ यह हुआ कि बार-बार ज्ञानी को पुराने ज्ञानियों की दुश्मनी में खड़ा होना पड़ता है। यह बड़ा उल्टा काम है । निरन्तर ज्ञानियों को पुराने ज्ञानियों की दुश्मनी में खड़ा होना पड़ता है । और यह दुश्मनी नहीं है; इससे बड़ी कोई मित्रता नहीं हो सकती क्योंकि इस भांति जो राख पकड़ ली गई है,उसको छुड़ाने का कोई रास्ता नहीं होता । तो अगर जो महावीर को प्रेम करता है उसे जैनियों के खिलाफ खड़ा होना ही पड़ेगा। अगर महावीर भी लौट आएं तो उन्हें भी खड़ा होना पड़ेगा क्योंकि जो उन्होंने दिया था वह जीवित अंगारा था; वह पकड़ा नहीं जा सकता, सिर्फ किया जा सकता, समझा जा सकता था। फिर अब राख रह गई है। उसको लोगों ने पकड़ लिया है । और उसको पकड़ कर वे बैठ गए हैं। - दुनिया में यह जो एक करिश्में को बात दिखाई पड़ती है, आश्चर्यजनक मालूम पड़ती है कि क्यों कभी ऐसा होता है कि कृष्ण के खिलाफ महावीर खड़े हैं कि महावीर के खिलाफ बुद्ध खड़े हैं कि बुद्ध के खिलाफ कोई और खड़ा है। यह कैसा अजीब है । होना तो यह चाहिए कि महावीर बुद्ध का समर्थन करते हों, क्राइस्ट बुद्ध का समर्थन करते हों, मोहम्मद महावीर का समर्थन करते हों, महावीर कृष्ण-राम का समर्थन करते हों। होना तो यह चाहिए लेकिन हुआ इसका उल्टा । होने का कारण है। इससे पहले कि किसी के जीवन में नए ज्ञान की किरण आए, जैसे ही यह किरण आती है उसे दिखाई पड़ता है कि लोगों के हाथ में राख है। कभी वह भी किरण थी लेकिन अब वह राख है। तो छटकारा होने वाला नहीं। फिर भी, न बद्ध महावीर के खिलाफ हैं, न महावीर कृष्ण के खिलाफ हैं। खिलाफ हैं शास्त्र बन जाने के । और जो भी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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