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प्रश्नोत्तर-प्रवचन- २
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ज्ञान की वृद्धि नहीं करता । शास्त्र उतना ही बता देता है जैसे समझ लें आइना है । आइना में भी हमें वही दिखाई पड़ जाता है, जो हम हैं । भाइना इसमें कोई वृद्धि नहीं देता । और कोई यह सोचता हो कि कुरूप आदमी आइने के सामने खड़ा होकर सुन्दर हो जाएगा तो वह गलती में है, वह एकदम ग़लती में है। कोई यदि यह सोचता है कि कोई अज्ञानी आदमी शास्त्र के सामने खड़ा होकर ज्ञानी हो जाएगा तो वह गलती में है। हां, ज्ञानी को शास्त्र में ज्ञान मिल जाएगा, अज्ञानी को अज्ञान ही दिलता रहेगा । और मजा यह है कि ज्ञानी शास्त्र में देखने नहीं जाता क्योंकि जब खुद ही दिख गया है तो उसे और किसी दूसरे से क्या देखना है । ओर अज्ञानी शास्त्र में देखने जाता है। अक्सर ऐसा होता है कि सुन्दर आदमी दर्पण से मुक्त हो जाता है और कुरूप आदमी दर्पण से आस-पास घूमता रहता है । वह जो कुरूपता का बोध है वह किसी भांति दर्पण से पक्का कर लेना चाहता है कि मिट जाए, नहीं है अब । सुन्दर दर्पण से मुक्त हो जाता है। असल में हम जितनी बार दर्पण को देखते हैं उतनी ही बार हमें कुरूपता का बोध होता है और किसी भांति पक्का
करना चाहते हैं कि,
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दर्पण यह कह दे कि अब हम कुरूप नहीं हैं । विश्वास में आ जाए कि हम अब कुरूप नहीं हैं । लेकिन घड़ी भर बाद फिर दर्पण देखना पड़ता है । क्योंकि कुरूपता का बोध है वही दर्पण में दिखाई पड़ता है बार-बार । शास्त्र में वही दिखाई पड़ता है, जो हम हैं ।
लेकिन यह बात ठीक है कि आज नहीं, कल मेरे शब्द इकट्ठे हो जाएंगे, और शास्त्र बन जाएंगे और जिस दिन मेरे शब्द शास्त्र बन जाएं उसी दिन उनकी हत्या हो गई। फिर भी, ध्यान रहे कि मैं किताब का विरोधी नहीं हूं, शास्त्र का विरोधी हूं । इन दोनों में फर्क करता हूं । किताब का दावा नहीं सत्य देने का । किताब का दावा है सिर्फ संग्राहक होने का। किसी ने कुछ कहा था उसे संग्रह किया गया। शास्त्र का दावा सिर्फ संग्राहक होने का नहीं; शास्त्र - का दावा सत्य देने का है। शास्त्र का दावा यह है कि मैं सत्य हूं। जो किताब यह दावा करती है कि मैं सत्य हूं, वह शास्त्र बन जाती है। किताब सिर्फ केवल विनम्र संग्रह है, दावा नहीं करती। जैसा कि मैंने कल कहा था कि लाओत्से ने किताब लिखने से पहले लिखा कि जो कहा जाएगा वह सत्य नहीं होगा, इसे -समझकर किताब को पढ़ना । शास्त्र नहीं बन रही है यह किताब; यह विनम्र
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किताब है, यह सिर्फ संग्रह है और इस किताब को यदि कोई शास्त्र बनाता है ' तो खुद ही जिम्मेदार है। यह किताब उस पर बोझ बनने की तैयारी में नहीं