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महावीर : मेरी दृष्टि में कहते कि यह रास्ता नहीं नहीं जाता है। यह रास्ता भी कहीं जाता है । लेकिन जहां वह जाना चाहता है वहां नहीं जाता बल्कि उससे उल्टा जाता है । प्रज्ञा की खोज में निकले हुए व्यक्ति को शास्त्र व्यर्थ है क्योंकि शास्त्र का रास्ता प्रमा को नहीं जाता, पांडित्य को जाता है। और पांडित्य प्रज्ञा से बिल्कुल उल्टी चीज है। पांडित्य है उवार और प्रजा है स्वयं की। और ऐसा असम्भव है कि उपारं सम्पदा को कोई कितना ही इकट्ठा कर ले तो वह स्वयं की सम्पदा बन जाए। जब मैं यह कहता हूं कि शास्त्र से नहीं जाया जा सकता तो भूल कर भी मत सोचना कि मैं शास्त्र की निन्दा करता हूं। ___ मैं तो केवल शास्त्र का स्वभाव बता रहा हूं और यदि शास्त्र का स्वभाव ऐसा है तो मेरे शब्दों को मानकर जो शास्त्र निर्मित हो जाएंगे उनका स्वभाव भी ऐसा ही होगा, यानी उनसे कभी कोई प्रज्ञा को नहीं जान सकेगा। अगर मैं ऐसा कह कि दूसरों के शास्त्र से कोई प्रज्ञा को नहीं जानता और मेरे शब्दों पर जो शास्त्र बन गया है उससे कोई प्रज्ञा को जानेगा तब तो गलत बात हो गई। तब तो मैं किसी भी शास्त्र की निन्दा कर रहा हूं और किसी के शास्त्र की प्रशंसा कर रहा हूं। नहीं, मैं तो शास्त्र मात्र का स्वभाव बता रहा हूं। वह चाहे महावीर का हो, चाहे बुद्ध का हो, चाहे कृष्ण का हो, चाहे मेरा हो, चाहे तुम्हारा हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी का भी शास्त्र सत्य ले जाने वाला नहीं है। हां, लेकिन दूसरी बात सच है कि अगर दिखाई पड़ जाए किसी को तो शास्त्र में दिखाई पड़ सकता है। लेकिन दिखाई पहले पड़ जाए । उसका मतलब यह हुआ कि शास्त्र किसी को दिखला नहीं सकता है लेकिन जिसको दिखाई पड़ता है उसे शास्त्र में भी दीख सकता है। लेकिन दिखाई पहले पड़ जाए तो फिर शास्त्र की क्या बात है, उसे पत्थर, कंकड़, दीवार, पहाड़ सबमें दिखाई पड़ता है । यानी यह सवाल फिर शास्त्र का नहीं रह जाता। जिसे दिखाई पड़ गया उसे सबमें दिखाई पड़ता है। तो उसे शास्त्र में क्यों दिखाई पड़ेगा ? अब शास्त्र में उसे नहीं दिखाई पड़ेगा जो उसे दिखाई पड़ रहा है । और कल तक चूंकि उसे नहीं दिखाई पड़ रहा था, इसलिए शास्त्र अन्धे ये क्योंकि उसके अन्धकार को भी तो अन्धकार ही दिखाई पड़ रहा था।
मेरा मतलब यह है कि शास्त्र में भी हमें वही दिखाई पड़ सकता है, जो हमें दिखाई पड़ रहा है। शास्त्र उससे ज्यादा नहीं दिखला सकता। इसलिए शास्त्र में हम यह नहीं पढ़ते जो कहने वाले या लिखनेवाले का इरादा रहा होगा। शास्त्र में हम वह पढ़ते है जो हम पढ़ सकते है । शास्त्र किसी भी अर्थ में हमारे