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महाबीर । मेरी दृष्टि में जीवन की कला जीवन में खड़े हो जाने की कला ही है । धर्म का विज्ञान द्रष्टा बन जाने का ही विज्ञान है, और सार शास्त्रों का सार है । और उन सारे व्यक्तियों की वाणी का अर्थ एक ही सत्य है और वह यह है कि खड़े हो जाओ, दौड़ो मत, देखो, डूबो मत । पास खड़े हो जाओ, दूर खड़े हो जाओ। अगर कोई अनडबा खड़ा रह जाए एक क्षण भी तो आप जो पूछ रहे हैं कि क्या फिर लोटना नहीं हो जाएगा? मैं कहता हूँ नहीं ! एक बार कोई खड़ा हो गया तो वहां से लौटने का सवाल ही नहीं है। मगर हम चूंकि दौड़ रहे हैं, लौटेंगे। बहुत बार लौट चुके हैं, लौटते रहेंगे और दौड़ते ही रहेंगे । और कई बार ऐसा होता है कि थोड़ा दौड़कर हम उपलब्ध नहीं हो पाते तो हम सोचते हैं कि और तेजी से दौड़ें।
छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात पूरी करूं। एक आदमी को अपनी छाया से डर पैदा हो गया। वह अपनी छाया से भयभीत होने लगा। वह अपनी छाया से बचने के लिए भागा। वह जितनी तेजी से भागा, छाया उसके पीछे भागी। उसने देखा कि छाया बड़ी तेज भाग सकती है। इतनी तेजी से काम नहीं चलेगा और तेजी से भागना पड़ेगा। उसने अपनी सारी जान लगा दी। जितनी तेजी से वह भागा, छाया उतनी तेजी से भागी । क्योंकि छाया उसकी ही थी जिससे वह भाग रहा था। वह स्वयं ही से भाग रहा था । पहुँच कहाँ सकता था ? छाया से छूट कैसे सकता था ? अपने से ही छूटने का उपाय क्या था? लेकिन गांव-गांव में खबर फैल गई। और गांव-गांव में लोग उसके दर्शन करने लगे और फूल फेंकने लगे। उसको रुकने की फुरसत कहाँ थी? क्योंकि रुकता है तो छाया और जोर से पकड़ लेती है, रुके और छाया फिर पकड़ ले।
तो वह गांव-गांव में भागता रहता। उनकी पूजा होने लगी। उस पर फूल बरसाने लगे। उसके चरणों में लाखों लोग झकने लगे और जितने लोग ज्यादा झुकने लगे, जितने फूल गिरने लगे वह उतनी ही तेजी से भागने लगा। और गांव-गांव में खबर हो गई कि ऐसा तपस्वी कभी नहीं देखा गया जो एक क्षण भी नहीं ठहरता, जो रुकता ही नहीं, जो रात बेहोश होकर गिर पड़ता और जब उसकी आँख खुलती और छाया दिखती तो वह फिर भागना शुरू कर देता। आखिर ऐसे आदमी का क्या हाल हो सकता है ? वह आदमी मरा। वह छाया साथ ही रही और मरा। जब मरा तब उसकी लाश की भी छाया बन गई। फिर लोगों ने उसको दफना दिया, एक कब्र बना दो बड़े दरख्त के नीचे और