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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १८ ५८१ लेंगे उसी के बाहर हो जाएँगे । तो इस चक्र में सब चीजें एक सी घूमती चली जाती हैं अगर द्रष्टा हो जाएँ तो हम तत्काल बाहर हो जाते हैं । । पाम्पई के शहर में बाग लगा क्योंकि पाप का ज्वालामुखी फूट गया था । सारा गाँव भागा। जिसके पास जो या बचाने को बचा सकता था, भागा बचाकर । किसी ने धन, किसी ने कनावें, किसी ने बही खाते, फर्नीवर, करड़े मोती, जवाहर -- जो जिसके पास चा लिया और भागा। फिर जो कोई पूरा नहीं बचा सका क्योंकि जब आग उगता हो तो पूरा बचाना मुश्किल हैं । और जब भागने का सवाल हो, जिन्दगी मुश्किल में पड़ी हो तो बहुत ज्यादा बचाने की चेष्टा में खुद को अटकाव नहीं जा सकता । लोग भागे । जात्रा रात थी । एक विवाह चौरास्ते पर बड़ा है जिसको सुबह छः बजे ड्यूटी बदलेगी । तब द्वारा आदमी आएगा। राव दो बजे नगर जल उठा है सारा नगर भाग रहा है। पुलिस वाला अपनी जगह पर खड़ा है। जो भी उनके करोब से निकलता है उससे कहता है, भागों, यह कोई वक्त है खड़े रहने का ! वह कहता है लेकिन अभी छ: कहाँ बजा है ? और अगर तुम भी खड़ा होना तो जान तो भागने को जरूरत नहीं । अग लगो है, वह बाहर है। और कितनी ही आग लग जाए, अगर में बड़ा हा रहूँ और देखता हा रहूँ जो आग दक्ष हा बाहर रहेगी क्योंकि देने वाला तो मैं पीछे हो, अलग हो, छूट जाऊँगा हर बार । आग करो आ सकती है, शरीर में लगती है लेकिन अगर में देखता ही गया तो मैं छूट पाऊँगा बाहर तुम व्यर्थ भाग रहे हो क्योंकि जहाँ तुम बाग रहे हो बाग यहाँ भी लग सकता है और कहीं भी भागोगे वा एक दिन आग लगेगी ही । हम सब भाग रहे हैं और खड़े नहीं हो पाते हैं। भागने की जो दोड़ है वह चक्रीय है। हम उसमें चक्कर लगाते चले जाते हैं। हर बार लगता है कि कहीं पहुँच रहे हैं, मगर कहीं भी नहीं पहुँच पाते क्योंकि चक्कर और आगे दिखाई पड़ने लगता है । लेकिन कोई खड़ा भी हो जाता है अभी पटरी सनांचे उतर कर और देखने लगता है उस चक्कर को तब बहुत हंसी आती है कि यह लोग व्यर्थ पागल को तरह दौड़े बने जाते हैं । और जिस जगह को छोड़कर वे भाग रहे हैं थोड़ी देर में उस जगह पर आ जाएँगे क्योंकि चक्कर गोल है और उसमें वे गोल घूम रहे हैं । कहीं कोई जा नहीं सकता, और सब भागे ले जा रहे हैं एक दूसरे के पोछे । जो व्यक्ति बाहर खड़ा हो जाता है, वह वैसा हो ही जाता है जैसे एक बड़ा नाटक चलता हो और कोई आदमी बाहर खड़ा होकर देखे |
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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