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मस्तोत्तर-प्रवचन-१८
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एक फकीर के पास लोग पूछने गए कि हम उसको कब्र पर क्या लिख दें । तो वह फकीर आया, उसने कब देखी दरख्त की छाया में । कत्र की कोई छाया न थी। तो उस फकीर ने कब्र पर लिखा कि जो तू जी कर न पा सका, वह तेरी कन ने पा लिया है और पा लिया है इसलिए कि तू भागता था और कत्र तेरी खड़ी है। उसकी छाया खो गई है । तू भागता था धूप में और तेजी से छाया तेरा पीछा करती थी। अपनी कब से तू सोख ले तो अच्छा है, नहीं तो ऐसी तेरी बहुत बार कब बनेगो और तू कभी न सीखेगा, भागता ही रहेगा। खड़ा हो जाना सूत्र है, छाया में ठहर जाना सूत्र है । हम सब धूप में दौड़ रहे हैं। वासना और तृष्णा की गहरी धूप है और हम सब की दौड़ है तो फिर हम चक्र के बाहर नहीं हो सकते।