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________________ 'प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१७ ५५९ गुजारना पड़ता है जागने के बाद । संसार छोटा बड़ा हो सकता है। जीवन में कोई मुक्त हो सकता है। लेकिन संसार से गुजरना ही पड़ेगा । वह अनिवार्य मार्ग है, जहाँ से मोक्ष का द्वार है । प्रश्न : जैसे समुद्र है। समुद्र से बादल उठते हैं, उसका पानी बरसता है, बर्फ बनती है, लेकिन फिर वह समुद्र में चली जाती है तो एक चक्कर है। इस तरह मुक्त आत्मा निगोद में किसी तरीके से जाती रहती होगी। ऐसा भी हो सकता है? उत्तर : नहीं, ऐसा चक्र नहीं है क्योंकि पानी, भाप, समुद्र, तीन चीजें नहीं है। यह एक ही चीज का यांत्रिक चक्र है। पानी के बीच से कोई बूंद मुक्त होकर पानी के बाहर नहीं हो पाती। चक्र घूमता रहता है जहां तक मोक्ष का सम्बन्ध है, वहाँ से लौटना मुश्किल है। क्योंकि यांत्रिकता छूट जाए, चित्त पूर्ण चेतन हो जाए, तो ही मोक्ष को जा सकता है। पूर्ण चेतना से लौटना असम्भव है । हाँ संसार में कोई चक्कर लगा सकता है। एक मनुष्य, हजार बार मनुष्य हो कर चक्कर लगा सकता है। वही-वही चक्कर लगा सकता है क्योंकि सोया हुआ है । अगर जग जाय तो चक्कर लगाना बन्द कर दे, बाहर हो जाए चक्कर के । चूंकि मोक्ष समस्त चक्कर के बाहर हो जाने का नाम है, इसलिए वापस चक्कर नहीं लगाया जा सकता। पानी की बूंद मूछित है, उसमें जो आत्माएं हैं, वे निगोद में ही है । पदार्थ का जगत् निगोद में ही है। वहीं तो पूरा चक्कर है । हम कह सकते हैं कि पानो गरम करेंगे तो भाप बनेगा । ऐसा पानी कभी नहीं देखा गया जो इन्कार कर दे कि मैं भाप नहीं बनता हूँ उसके पास कोई चेतना नहीं है । हम पूर्वमूचित कर सकते हैं पानी के बाबत । लेकिन आदमी के बाबत पूर्वसूचित करना मुश्किल है। ऐसा जरूरी नहीं कि प्रेम करेंगे तो वह प्रेम करेगा ही। बिल्कुल जरूरी नहीं, साधारणतः जरूरी है। लेकिन एकदम जरूरी नहीं है। और इसलिए आदमी प्रिडिक्शन के थोड़ा बाहर है क्योंकि उसमें चेतना है । उसका पक्का नहीं बताया जा सकता कि वह क्या करेगा? पदार्थ के बाबत पक्का बताया जा सकता है। इसलिए पदार्थ का विज्ञान बन गया है। और आदमी का विज्ञान अभी तक नहीं बन पा रहा है । न बनने का कारण यह है कि पदार्थ की सारी व्यवस्था यांत्रिक है, नियम पक्का है। इतने पर गर्म करो पानी भाप बन जाएगा, इतने पर ठंडा करो बर्फ बन जाएगा। इसमें कोई संदेह ही नहीं है-चाहे तिब्बत में करो,
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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