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________________ ५६० महावीर ; मेरी दृष्टि में चाहे चीन में करो, चाहे ईरान में करो, कहीं भी करो। वह भाप बनेगा उतने पर, उतने पर ही बर्फ बनेगा। वह नियम पक्का है क्योंकि यांत्रिक है पूरा । लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर आते हैं यांत्रिकता टूटती चली जाती है। आदमी में आकर भी यांत्रिकता बहुत शिथिल हो जाती है। आदमी के बाबत पक्का नहीं कहा जा सकता कि वह क्या करेगा? आप ऐसा करोगे तो वह क्या करेगा ? बिल्कुल ही प्रिडिक्शन के बाहर काम करने वाला आदमी मिल सकता है । तरहतरह के लोग हैं, और उनको तरह-तरह की चेतना है । लेकिन मोक्ष में तो प्रिडिक्शन बिल्कुल ही नहीं हो सकतो । क्योंकि वहाँ तो जितना पूर्ण मुक्त है, पूर्ण जागरण है, उसकी वावत तुम कुछ भी नहीं कह सकते। क्योंकि वहाँ कोई नियम का यंत्रवत् व्यवहार नहीं है। मनुष्य में इसलिए तकलीफ होती है क्योंकि मनुष्य का विज्ञान नहीं बन सका पूरी तरह । मनुष्य का पूर्ण विज्ञान बनाना मुश्किल भी है। किसी को हम गाली देंगे तो साधारणतः वह क्रोध करेगा लेकिन कोई महावीर मिल सकता है जिसे आप गाली दें तो वह चुपचाप खड़ा रहे और क्रोध न करे। ___ आदमी जितना चेतन हो जाएगा उतना ही उसकी बाबत कुछ नहीं कहा जा सकता कि गणित के हिसाब से ऐसा होगा। यह प्रकृति चक्र है बिल्कुल । वर्षा आती है, सर्दी आती है, गर्मी आती है, चक्र घूम रहा है । नदियां हैं, पानी है, पर्वत हैं । बादल बने हैं, लौट रहे हैं, चक्कर चल रहा है। जितने नीचे उतरेंगे, चक्कर उतना सुनिश्चित है । जितना ऊपर उठेंगे, चक्कर उतना शिथिल है । जितना ऊपर उठते चले जाएंगे, चक्कर उतना शिथिल होता चला जाएगा। पूर्ण उठ जाने पर चक्कर नहीं है, सिर्फ आप रह जाते हैं, कोई दवाव नहीं है, कोई दमन नहीं है, कोई जबरदस्ती नहीं है। सिर्फ आपका होना है । यह मुनि, स्वतंत्रता का अर्थ है । अमुक्ति, बंधन, परतन्त्रता का यही अर्थ है कि बंधे हुए चक्कर लगा रहे हैं, कुछ उपाय नहीं है। बटन दबाते हैं, पंखे को चलना पड़ता है, कोई उपाय नहीं है । पंखे की कोई इच्छा नहीं है। कोई स्वतन्त्रता नहीं है। बंधन से मोक्ष की ओर जो यात्रा है, वह अचेतन से चेतन की ओर यात्रा है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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