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महावीर : मेरी दृष्टि में
बाहर निकाल लो तो भी पूर्ण ही शेष रह जाता है। उससे जरा भी कमी नहीं पड़ती। मगर हमारे दिमाग में मुश्किल हो जाती है कि हम जब भी कुछ निकालते है तो पीछे कमी पड़ जाती है। क्योंकि हमने सीमित से ही कुछ निकाला है सदा । अगर हमने असीमित में से कुछ निकाला होता तो हमें पता चलता । असीमित का हमको कोई अनुभव नहीं है।
इसलिए निगोद अनन्त है । उसमें कमी कभी नहीं पड़ती, मोक्ष अनन्त है, वहाँ कभी भीड़ नहीं होती। दोनों के बीच का संसार एक अपना अनन्त है क्योंकि दो अनन्तों को जोड़ने वाली चीज अनन्त हो सकती है। वह भी संख्या में नहीं हो सकती क्योंकि दो अनन्तों का जो सेतु बनता है, वह कैसे सीमित हो सकता है । अनन्तों को अनन्त ही जोड़ सकता है। उस तल पर जाकर गिनती का कोई मतलब नहीं है । मोक्ष को धारणा बहुत लोगों को है। काल में निगोद की धारणा महावीर की अपनी है और मैं मानता हूँ कि बिना निगोद की धारणा के मोक्ष की धारणा बेमानी है क्योंकि वहाँ आत्माएं चलती चली जाएंगी। आएँगी कहाँ से ?
प्रश्न । निगोद से आत्मा मोक्ष तक नहीं पहुंच सकती क्या ?
उत्तर : नहीं, मूछित आत्मा मोक्ष तक कैसे पहुँच सकती है ? उसे अमूर्छा के रास्तों से गुजरना पड़ेगा । आप जब निद्रा से जगते हैं तो एकदम नहीं जग जाते । बीच में तन्द्रा का एक काल है, जिससे आप गुजरते हैं । जैसे सुबह आप उठ गए है। आपको लगता है कि उठ गए लेकिन फिर करवट बदल कर आंखें बंद कर ली हैं। फिर घड़ी की आवाज सुनाई पड़ी है। फिर किसी ने कहा उठिए, तो आप फिर उठ गए हैं। फिर आँख खोली है, फिर करवट बदलकर सो गए हैं । सोने और जागने के बीच में, चाहे कितना ही छोटा हो, तन्द्रा का एक काल है जब न तो आप ठोक जाग गए होते हैं, न ठीक सोए हुए होते हैं। सोने की तरफ भी झुकाव होता है, जागने की तरफ भी मन होता है । इन दोनों के बीच एक तनाव होता है।
निगोद से सीधा कोई मोक्ष में नहीं जा सकता। संसार से गुजरना ही पड़ेगा। कितनी देर गुजरना है, यह दूसरी बात है। कोई पन्द्रह बीस मिनट बिस्तर पर करवट बदल कर उठता है, कोई पांच मिनट, कोई एक मिनट, कोई एक सैकेंड और जो बिल्कुल छलांग लगा कर उठ आता है वह भी सिर्फ हमको दिखाई पड़ता है। बिल्कुल, काल का कोई सूक्ष्म अंश उसको भी बिस्तर पर