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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१७
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चौड़ाई है। लेकिन यह बात जब तक मानी जाती रही तव तक बिल्कुल ठीक लगती थी। अब एकदम गड़बड़ हो गई।
जैसी कि हमारी संख्या की, गणित की व्यवस्था है । हम सब मानते हैं कि एक से नौ तक संख्या होती है। कोई कभी नहीं पूछता कि इससे ज्यादा क्यों नहीं होती, इससे कम में क्यों नहीं होती। यह एक परम्परा है। किसी पहले आदमी को फतूर सवार हो गया। उसने नौ का हिसाब बना डाला। वह चल पड़ा । और चूंकि गणित एक जगह पैदा हुआ फिर सारी दुनिया में फैल गया इसलिए कभी किसी ने नहीं सोचा। लेकिन पीछे कई लोग पैदा हुए जिन्होंने कुछ बदला जैसे लोबनिस हुआ। लोबनिस ने तीन अंकों से काम चलाया । उसने कहा कि तीन से ज्यादा को जरूरत नहीं-एक, दो, तीन । फिर तीन के बाद आता है-१०-११-१२-१३, फिर बीस आ जाता है। बाकी सब बिदा कर दिये उसने । सव गणित हल कर ली उतने में ही। आइंस्टीन ने कहा कि तीन की भी क्या जरूरत है। दो से ही काम चल जाता है । १-२-१०.११-१२, २०, २१, २२ ऐसे चलता-चला जाता है। अगर हम पुराना गणित मानते हैं तो एक, दो, तीन, चार, पांच होते हैं । अगर आइंस्टीन का गणित मान लेते हैं, १,२,१०,११,१२ इस तरह का तो ये पांच है ही नहीं। यह पांच सिर्फ हमारा गणित का हिसाब है। गणित का हिसाब बदल दें तो ये सब बदल जाएंगे। ___ तो हमारा संख्या का हिसाब है जगत् में और हम सब चीजों को संख्या से तोलते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि संख्या बिल्कुल ही झूठी बात है, आदमी की ईजाद है । क्योंकि यहां कोई भी ऐसी चीज नहीं जिसको संख्या हो । प्रत्येक चीज असंख्य है। और अगर असंख्य का हम ख्याल करें तो गणित बेकार हो जाता है। फिर गणित का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। जब असंख्य है, गिना ही नहीं जा सकता, गिनने योग्य ही नहीं है और कितना ही निकाल लो बाहर, उतरना ही फिर पीछे रह जाता है तो जोड़ का क्या मतलब, घटाने का क्या मतलब ? भाग का क्या मतलब ? गुणा का क्या मतलब ? अगर हम जगत् की पूरी व्यवस्था को ख्याल में लाएं तो गणित एकदम गिर जाता है, क्योंकि गणित बना है काम चलाऊ हिसाव से कि हम उसमें गिनतो करके काम चला लें। और उसी काम चलाऊ गणित से अगर हम जगत के सत्य को जानने जाएं तो हम मुश्किल में पड़ जाते हैं। तो महावीर की बात एकदम गणित से उल्टी है और जो भी सत्य के खोजी हैं उनकी बातें निरन्तर गणित से उल्टी है। इसलिए उपनिषद् कहते हैं कि वह पूर्ण ऐसा है कि उससे अगर तुम पूर्ण को भी