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________________ ५५६ महावीर : मेरी दृष्टि में अनन्त के साथ एक मजा है कि उसमें से कितना ही निकालो, पीछे उतना ही शेष रहता है जितना था। इसको थोड़ा समझ लेना जरूरी है। क्योंकि वह जो हमारा आम गणित है वह कहता है कि इस कमरे में कितने ही लोग हों लेकिन अगर दो आदमी बाहर निकल गए तो फिर पीछे उतने तो नहीं रहे जितने थे । हमारा गणित कहता है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि पीछे उतने ही रह जाएं जितने थे क्योंकि दो निकल गए। और अगर हम यह मान लें कि दो के निकलने से पीछे कुछ कम हो गए तो फिर संख्या हो सकती है क्योंकि कम होते चले जाएँगे । एक वक्त आएगा, शून्य भी हो सकता है। यह गणित की बड़ी पहेलियों में से एक है कि अनन्त में से हम कुछ भी निकालें, अनन्त ही शेष रहता है। इसलिए निगोद उतने का ही उतना है जितना था; उतना ही रहेगा जितना था, और उतना ही सदा है, उतना ही सदा रहेगा। मुक्त आत्माएँ रोज होती चली जाएँगो, मोक्ष में कोई भीड़ नहीं बढ़ जाएगी। इसमें भीड़ बढ़ने का कोई सवाल नहीं है। लेकिन हमारा जो गणित है संख्या का उसे समझना बड़ा मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए, हम एक सीधी रेखा खींचते है जमीन पर। दो बिन्दुओं के बीच निकटतम जो दूरी है, वह सीधी रेखा बन जाती है। लेकिन जो नयी ज्योमेट्री इसके खिलाफ में विकसित हुई है, कहती है कि सीधी रेखा होती ही नहीं क्योंकि जमीन गोल है। इसलिए कितनी ही सीधी रेखा खींचों, अगर तुम उसको दोनों तरफ बढ़ाते चले जाओ, तो अन्त में वह वृत्त बन जाएगी। इसलिए सब सीधी रेखाएँ किसी बड़े वृत्त के खंड हैं । और वृत्त के खंड कभी सीधी रेखाएं नहीं हो सकते। इसका मतलब हुआ कि सीधी रेखा होती ही नहीं। वह हमको सीधी लगती है। अगर हम उसे फैलाते चले जा तो अन्ततः वह एक बड़ा सकिल बन जाएगी। और जब वह बड़ा सर्किल बन सकती है तो वह बड़े सकिल का हिस्सा है। और सकिल का हिस्सा, सीधा नहीं हो सकता। इसलिए कोई रेखा जगत् में सीधी नहीं है । यह हमारे ख्याल में आना मुश्किल है कि कोई भी रेखा जगत् में सीधी खींची ही नहीं जा सकती। क्योंकि जितना ही तुम खींचते चले जाओगे, अन्त में वह मिल ही जाएगी। इसलिए कोई सीधी रेखा नहीं है, सब वृत्त हैं । सब वृत्त खंड है । साधारण गणित कहता है कि बिन्दु वह है जिसमें लम्बाई चौड़ाई नहीं है मगर ज्योमेट्री कहती है कि जिसमें लम्बाई-चौड़ाई न हो वह तो हो ही नहीं सकता, इसलिए कोई बिन्दु नहीं है। सब रेखाओं के खंड है-छोटे खंड। रेखा है बड़े वृत्त का खंड, और बिन्दु है रेखा का खंड । सब बिन्दुओं में लम्बाई.
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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