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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१७ ge मुझे दुःख दे रही है। मगर मुझे सुखी होना है तो ईर्ष्या से मुझे मुक्त हो जाना चाहिए ताकि मुझे कोई भी दुःख न दे सके, बड़ा मकान भी न दे सके, मानन्दित आदमो भी न दे सके, कार भी न दे सके, स्त्री भी न दे सके, कोई भी चीज दुःख न दे सके क्योंकि मेरे पास वह जो तरकीब थो दुःख पैदा करने की, वह बिदा हो गई । अब मैं ईर्ष्यालु नहीं हूँ। और जब मैं ईर्ष्यालु नहीं हूँ तो मुझे हर चीज सुख दे सकती है क्योंकि अब तो दुःख का कोई कारण नहीं रहा। वह व्यवस्था टूट गई, वह यंत्र ही टूट गया जो दुःख पैदा कर देता था। जोवन के विरोध के प्रति जाग जाना कि हम जो चाहते हैं, उससे उल्टा कर रहे हैं, साधना की शुरूआत है । और जब हमें दिखाई पड़ जाय तो हम उल्टा न कर सकेंगे। हम कैसे उल्टा करेंगे? उदाहरण के लिए एक आदमी सोना चाहता है । नींद उसे आती नहीं । वह नींद लाने की तरकीबें करता है । पैर धोता है, आँख घोता है, पानी पोता है, राम-नाम जपता है, माला फेरता है, करवट बदलता है, टहलता है, भेड़-बकरियां गिनता है, हजार तरकीबें करता है कि किसी तरह उसे नोंद आ जाए। लेकिन उसे पता नहीं कि जितनी तरकीबें वह कर रहा है, वह नोंद न आने देने को है। क्योंकि कोई भी प्रयास हा वह नींद को तोड़ने वाला है। वह कुछ भी न करे तो शायद नोंद आ जाए । उसने कुछ भी किया तो फिर नोंद नहीं आ सकती क्योंकि करना नींद के बिल्कुल उल्टा है। नोंद आती है न करने से। इसलिए एक बार एक मादमी की नीद गड़बड़ हो गई फिर वह बुरे चक्कर में पड़ गया क्योंकि अब वह नींद लाने का उपाय करेगा। उपाय नींद को तोड़ेंगे । जितनी नींद टूटेगी उतने ज्यादा उपाय करेगा; जितने ज्यादा उपाय करेगा उतनी ज्यादा नींद टूटेगी। और वह एक चक्कर में पड़ जाएगा जिसके बाहर निकलना मुश्किल है। उसका यह विरोध दिखाई पड़ जाएगा किसी दिन कि प्रयास से नोद नहीं आ सकती है। नींद तो तब आती है जब कोई कुछ नहीं करता। चाहे वह मंत्र पढ़े, चाहे माला फेरे, चाहे कुछ भी करे। करना मात्र नोंद का उल्टा है। लेकिन हम पूरी जिन्दगी में • विरोधाभास म जोते हैं। जैसे ही कोई इस बोध को उपलब्ध हो जाता है और अपने भीतर विरोध देखने लगता है, वैसे हो क्रान्ति शुरू हो जाती है क्योंकि विरोध दिख जाए तो फिर उसमें जीना मुश्किल है। फिर आप जी नहीं सकते । यह कैसे सम्भव है कि एक आदमी को जाना छत पर है और वह नोचे उतर आए और उसे दिख जाए कि उतर रहा है नोचे का आर, जाना है ऊपर तो क्या वह फिर नोचे उतर सकता है ? बात खत्म हो गई। ऊपर जाएगा हो वह । और
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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