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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में देंगे। वह भी अस्वीकार की एक तरकीब है। पूजा कर सकते हैं उसकी । लेकिन चूंकि वह आदमी ही नहीं है इसलिए आदमियों को उससे अब क्या लेनादेना रह जाता है । पहले हम निन्दा करते हैं, विरोध करते हैं । अगर अहिंसक व्यक्ति भी हिंसा पर उतर आए तो हमारी और उसकी भाषा एक हो जाती है । तब तो उपाय मिल जाता है । और अगर वह अपनी अहिंसा पर खड़ा रहे और हमारी हिंसा उसमें कोई फर्क न कर पाए तो फिर हमें कोई उपाय नहीं मिलता । हारे-थके, पराजित फिर हम उसे भगवान् बना देते हैं । यह दूसरी तरकीब है आखिरी जिससे हम उसे मनुष्यजाति से बाहर निकाल देते हैं । फिर हमें इसकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं रह जाती । फिर हम निश्चिन्त हो जाते हैं । यह भी समझना जरूरी है कि मैं कितने ही जोर से बोलूं, और मेरे बोलने में कितना ही प्रेम हो, कितनी हो आवाज हो, कितनी बड़ी ताकत हो लेकिन जो बहरा है उस तक मेरी आवाज नही पहुँचेगी। यानी जब मैं बोलता हूँ तो दो बाते हैं : मेरा बोलना और आपका सुनना । अगर बहरे तक आवाज न पहुँचे तो यह नहीं कहा जा सकता कि मैं गूंगा था । मेरे बोलने पर इसलिए शक नहीं किया जा सकता कि बहरे तक आवाज नहीं पहुँची, इसलिए मैं गूंगा था । महावीर के अहिंसक होने में इसलिए शक नहीं हो सकता कि हिंसक चित्तों तक उनकी आवाज नहीं पहुँच पाती । बहुत गहरे में हम बहरे हैं । न हम सुनते हैं, न हम संवेदन करते हैं, न हम देखते हैं। ५२८ इसी सम्बन्ध में एक प्रश्न और भी किसी ने पूछा है कि महावीर के प्रेम में क्या कुछ कमी थी कि वह गोशालक को समझा न पाए । निश्चित हो, समझने में प्रेम काम आता है और पूर्ण प्रेम समझने की पूरी व्यवस्था करता है । लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता कि पूर्ण प्रेमी समझा हो पाएगा। क्योंकि, दूसरी तरफ पूर्ण घृणा भी हो सकती है जो समझने को राजी ही न हो, पूर्ण बहरापन भी हो सकता है जो सुनने को राजी न हो । महावीर के प्रेम या अहिंसा पर इसलिए शक नहीं हो सकता कि वह दूसरे को नहीं समझा रहे हैं, या दूसरे को नहीं बदल पा रहे हैं, या दूसरे की हिंसा नहीं मिटा पा रहे हैं । इसके तो कई कारण हो सकते हैं । महावीर की अहिंसा की जांच करनी हो तो दूसरे की तरफ से जाँच करना गलत है। देखना उचित है। सूरज को जानना हो तो किसी अंधे आदमी को माध्यम बनाकर जानना गलत है । हम अंधे आदमी से जाकर पूछें कि सूरज है और वह कहे कि नहीं है तो हम कर सकते हैं कि कैसा सूरज है जो एक अंधे आदमी को सीधे महावीर को ही
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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